सोशल संवाद / जमशेदपुर : संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य पर विजयादशमी के अवसर पर जमशेदपुर के कई नगरों में विजयादशमी उत्सव मनाया गया व घोष सह पथ संचलन निकाला गया। गाढ़ाबासा सेंटर मैदान से बर्मामाईन्स में, फार्म हाउस एरिया से कदमा में, गणेश पूजा मैदान से सिदगोड़ा में, बाराद्वारी से साकची में, मानगो हिल व्यू कॉलोनी, खड़िया बस्ती व गुरुद्वारा बस्ती से मानगो में, स्वामी सहजानंद सरस्वती संस्थान से गोविंदपुर में व हरिओमनगर से आदित्यपुर में पथ संचलन निकाला गया, जिनमें सभी नगरों के हजारों बाल व तरुण स्वयंसेवकों की अग्रणी भूमिका रही।
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समाज ने भी बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता दिखाई और इसी क्रम में पथ संचलन करते स्वयंसेवकों का कई स्थानों पर भारत माता की जय के उद्घोष व मातृ शक्ति के द्वारा पुष्पवर्षा के साथ अभिनंदन किया गया।

संचलन के पश्चात नगरों में भिन्न-भिन्न स्थानों पर शस्त्र पूजन सह विजयादशमी उत्सव मनाया गया। आज के विभिन्न कार्यक्रमों के बौद्धिककर्ताओं में प्रमुख रूप से विभाग प्रचारक सत्यप्रकाश जी, प्रांत बालकार्य प्रमुख सूरज जी, विभाग प्रचार प्रमुख आलोक जी, महानगर कार्यवाह रवींद्र जी, सह महानगर कार्यवाह मृत्युंजय जी, महानगर संपर्क प्रमुख सुनील जी, सह नगर कार्यवाह उत्पल जी आदि ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन 1925 में आज ही के दिन डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी ने नागपुर में की थी। तब से अबतक संघ अपने सतत कार्य करते हुए समाज जागरण में लगा हुआ है। आज संघ का 100 वर्ष पूर्ण हुआ है।

विजयदशमी शक्ति उपासना का उत्सव है, विजयादशमी आसुरी शक्ति के ऊपर सात्विक और दैवीय शक्ति की विजय का प्रतीक है। सैकड़ों वर्षों के आक्रमणों के कारण पतित, पराभूत, आत्माशून्य, आत्मविस्मृति हिंदू समाज में नव चैतन्य, आत्मविश्वास एवं विजय की आकांक्षा के निर्माण के लिए डॉक्टर साहब ने 10 से 12 नवयुवकों को लेकर अपने घर पर 1925 में आज के दिन ही हिंदू समाज का संगठन प्रारंभ करने की घोषणा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक की स्थापना की।
डॉक्टर साहब जन्मजात देशभक्त थे। वह अपने डॉक्टर की पढ़ाई के दौरान कोलकाता में अनुशीलन समिति में कार्य किए और अपने डॉक्टर की पढ़ाई पूर्ण करके नागपुर में कांग्रेस में रहकर भी देखें और 1921 में 1 वर्ष का कारावास भी उन्हें हुआ। उन्होंने बताया कि संघ यात्रा का 100 वर्ष उपेक्षा, विरोध, सहयोग एवं सहभाग का रहा। संघ अपने शताब्दी वर्ष में स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज में पांच परिवर्तन का आह्वान कर रही है।

सामाजिक समरसता के माध्यम से सभी हिंदू भारत मां के पुत्र हैं व सभी हिंदू सहोदर हैं। पूर्व काल में और वर्तमान में भी भारत की अर्थव्यवस्था का आधार हिंदू समाज की कुटुंब व्यवस्था एवं परिवार व्यवस्था है। परिवार किसी भी समाज की नींव होता है। एक सशक्त और जागरूक परिवार समाज का निर्माण की दिशा में पहला कदम है। कुटुंब प्रबोधन का मतलब है कि परिवार के सदस्य शिक्षा, नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक हों।
पर्यावरण संरक्षण आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने से जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा और प्रदूषण जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जो सीधे तौर पर देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर प्रभाव डालती हैं। स्वदेशी यानी स्वभाषा का आग्रह, वेशभूषा में भारतीयता के दर्शन और विदेशी वस्तुओं का न्यूनतम प्रयोग।
नागरिक कर्तव्य के माध्यम से नियमों का पालन। उन्होंने कहा कि आज समाज जीवन में हम सभी स्वयंसेवक समाज के प्रति निरंतर कार्य करने में लगे हुए हैं। हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि भारत का पुत्रवत हिंदू समाज सामर्थ्यशाली था, इसलिए वैभव संपन्न था। संघ का अंतिम लक्ष्य पुत्रवत हिंदू समाज को जागृत, संस्कारित, शक्ति-संपन्न और सामर्थवान बनाना है। संघ हिंदू समाज में कोई संगठन नहीं है, वरन् संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन है।








