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पूजा के समय आरती क्यों की जाती है ? जाने कारण

By admin

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सोशल संवाद डेस्क : सनातन धर्म में देवी देवताओं की उपासना व पूजा पाठ करने का विधान है। घर और मंदिरों में सुबह शाम भगवान की आरती की जाती है। जिसमें भक्त सच्ची श्रद्धा से उपस्थित होकर भगवान से सुख—समृद्धि की कामना करते हैं। यूं तो सभी देवताओं की पूजा पाठ के नियम व विधि विधान भिन्न होते हैं। परंतु, सामान्य रूप में किसी भी देव की पूजा में आरती का बड़ा महत्व होता है।  पूजा पाठ में धूप—अगरबत्ती, कपूर, दीपक आदि जलाकर भगवान की स्तुती की जाती है। पूजा के वक्त आरती करना और आरती में शामिल होने से भगवान हमारी पुकार सुनते हैं और हमें पुण्य की प्राप्ति होती है।

धार्मिक शास्त्रों में उल्लेख है कि आरती ऊंचे स्वर और एक ही लय ताल में गाने से वातावरण भक्तिमय, संगीतमय हो जाता है, जो कि मनुष्य के रोम को भी छू जाता है। इससे व्यक्ति का मन उत्साह से भर जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि देवताओं की पूजा अर्चना के समय विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ आरती के गायन करने से ईष्ट जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है कि जो भक्त मंत्रों को ज्ञान नहीं रखता हो, पूजन विधि की जानकारी ना हो, तो वह आरती करके प्रभु की भक्ति कर सकता है।

आरती करने के पीछे ना सिर्फ धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं। आरती के वक्त जब रूई, घी व कपूर जलाते हैं तो इससे वातावरण में महक फैलती है। इस महक से नेगेटिव एनर्जी खत्म हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है। ऐसा करने से शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाले जीवाणु भी नष्ट हो जाती है। वहीं, मंदिरों में आरती के वक्त शंख, घंटे आदि की ध्वनि से मन पॉजिटिव हो जाता है। आरती व्यक्ति का ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है जिससे मानसिक शांति मिलती है। आरती करने से मन पवित्र और तन स्वस्थ रहता है। इसी वजह से शास्त्रों में पूजा के बाद आरती को महत्वपूर्ण बताया गया है।

अक्सर देखने को मिलता है कि भगवान की आरती होने के बाद भक्तगण दोनों हाथों से आरती लेते हैं । आखिर आरती लेते समय इस तरह का भाव क्यों आता है ? यह जानना बहुत जरूरी है । पहला भाव ये होता है कि जिस दीपक की लौ ने हमें अपने आराध्य के नख-शिख के इतने सुंदर दर्शन कराएं हैं, उसको हम सिर पर धारण करते हैं । दूसरा भाव ये होता है कि जिस दीपक की बाती ने भगवान के अरिष्ट हरे हैं, जलाए हैं, उसे हम अपने मस्तक पर धारण करते हैं । आरती लेने का सही तरीका ये होता है कि आरती की लौ को हाथ से लेकर पहले सिर पर घुमाएं और उसके बाद उस आरती की लौ को अपने माथे की ओर धारण करें ।

मंदिरों में भगवान की आरती 5 बार की जाती है। सबसे पहली आरती ब्रह्म मुहूर्त में भगवान को नींद से जगाने के लिए, दूसरी भगवान को स्‍नान कराने के बाद उनकी नजर उतारने के लिए , तीसरी दोपहर में जब भगवान विश्राम के लिए जाते हैं, चौथी जब शाम को जब भगवान विश्राम करने के बाद उठते हैं, आखिरी और पांचवी आरती रात में भगवान को सुलाते वक्‍त की जाती है । घर में इतनी बार आरती करना संभव नहीं होता है, इसलिए सुबह और रात में पूरी विधि से भगवान की आरती कर सकते हैं ।

इस संसार की रचना पंच महाभूतों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से हुई है, इसलिए आरती में ये पांच वस्तुएं भी शामिल रहती है । पृथ्वी की सुगंध कपूर, जल की मधुर धारा घी, अग्नि दीपक की लौ, वायु लौ का हिलना, आकाश घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि का प्रतिनिधित्‍व करते हैं । इस प्रकार संपूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है ।

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