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भारत के ऐसे संत जो बिना माचिस के जला सकते है दिया , 10 साल तक किया है खड़े होकर तप

By admin

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सोशल संवाद /डेस्क (रिपोर्ट : तमिश्री )-भारत भूमि साधु-संतों की तपस्थली के रूप में जानी जाती है। आम जनता के लिए ये तप स्थल ही तीर्थ बन जाते हैं।इतिहास गवाह है कि भारतीय संतों ने योग और ध्यान के बल पर पूरे विश्व को चौंकाने का काम किया है। साथ ही कठीन साधना के जरिये इंद्रियों पर संयम रखने और शरीर को हर मौसम के अनुकूल बनाकर भी सब को हैरान किया है।ऐसे ही एक संत हैं भटयाण के सियाराम बाबा।

बाबा की उम्र 109 वर्ष बताई जाती है। हालांकि, कोई इनकी उम्र 80 बताता है, तो कोई 130 बाबा भगवान हनुमान के परम भक्त हैं और आपको निरंतर राम चरित्रमानस का पाठ करते मिल जाएं। बिना चश्मे के वे रामायण की चौपाइयों को सटीक पढ़ते हैं।  संत सियाराम बाबा का आश्रम मध्यप्रदेश में खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर भट्यान गांव में नर्मदा किनारे स्थित है। गांव के लोग बाबा से जुड़ी कई चमत्कारिक घटनाएं बताते हैं। बाबा के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु नर्मदा किनारे स्थित इस गांव में आते हैं। उनके नाम से ही गांव प्रसिद्ध हो चुका है।

सियाराम बाबा की जर्जर हो चुकी काया देखकर उनकी उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है। लोग देश-विदेश से इनके दर्शनों के लिए आते हैं। संत बाबा के तन पर कपड़े के नाम पर केवल एक लंगोट होती है। कड़ाके की ठंड हो, बरसात हो या फिर भीषण गर्मी, बाबा लंगोट के अतिरिक्त कुछ धारण नहीं करते। ग्रामीण बताते हैं कि आज तक उन्होंने बाबा को कभी पूर्ण वस्त्रों में नहीं देखा है।

ध्यान साधना के बल पर उन्होंने अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया है, इसलिए कड़ाके की ठंड भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है।वहीं, इतनी उम्र होने के बावजूद वो अपना पूरा काम स्वयं ही करते हैं। वो अपना भोजन ख़ुद ही बनाकर खाते हैं। श्रद्धालु बताते हैं कि बाबा ने 10 सालों तक खड़े होकर तप किया था। बाबा के बारे में किसी को अधिक जानकारी नहीं है। ग्रामीणों के मुताबिक बाबा हनुमानजी के भक्त हैं। नर्मदा किनारे ही हनुमानजी का एक छोटा-सा मंदिर है, लेकिन किसी विवाद के चलते मंदिर को दीवार से पूरा ढंक दिया गया है।

ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर पर दीवार होने के बाद कान लगाने पर भी घंटी की आवाज आती है। आश्रम में आने वाले श्रद्धालुओं से बाबा सिर्फ 10 रुपए का दान लेते हैं।  कोई अगर अधिक देता भी है तो वे लौटा देते है। ग्रामीणों के मुताबिक बाबा मंदिरों और धर्मशालाओं के लिए करोड़ों रुपए का दान कर चुके हैं।  तो बाबा ने नर्मदा घाट की मरम्मत और बारिश से बचने के लिए शेड बनवाने के लिए 2 करोड़ 57 लाख रुपए दान में दिए थे। ये पैसा उन्हें आश्रम की डूब के मुआवज़े के रूप में दिया गया था। वहीं, एक निर्माणाधीन मंदिर के शिखर निर्माण के लिए सियाराम बाबा ने 5 लाख रूपए  भी दान दिए थे।

बाबा के नाम के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है। कहते हैं कि बाबा ने 12 वर्षों तक मौन धारण  करके रखा हुआ था। वहीं, जब 12 वर्षों बाद उन्होंने अपना मुख खोला, तो उनके मुख से पहला शब्द निकला ‘सियाराम’। इस वजह से गांव के लोगों ने उनका नाम सियाराम रख दिया और अब बाबा सियाराम बाबा के नाम से ही जाने जाते हैं।

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