सोशल संवाद / डेस्क : चित्रगुप्त महाराज कायस्थ लोगों के इष्ट देव माने जाते हैं. जाओं में कलम, दवात, करवाल और किताब धारण करने वाले चित्रगुप्त जी को यमराज का मुंशी भी कहा जाता है. वे सभी प्राणियों के अच्छे-बुरे का लेखा जोखा रखते हैं. चलिए जानते हैं कि आखिर वे यमराज से कैसे जुड़े.
पौराणिक कथा के अनुसार, यमराज को पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों को कर्मों के अनुसार सजा देने का कार्य सौंपा गया था. यमराज ने इसके लिए ब्रह्मा जी से एक सहयोगी की मांग की. इसके बाद ब्रह्मा जी ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की. इसके बाद एक पुरुष की उत्पत्ति हुई जिन्हें चित्रगुप्त कहा गया. ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण भगवान चित्रगुप्त के वंसज कायस्थ कहलाते हैं.
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भगवान चित्रगुप्त की पूजा वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को की जाती है. इस दिन को चित्रगुप्त जयंती के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन उनकी उत्पत्ति हुई थी. इसके अलावा भगवान चित्रगुप्त की पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भी की जाती है. मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने से भगवान प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. इससे व्यक्ति को मृत्यु के बाद नर्क के कष्ट नहीं भोगने पड़ते.