सोशल संवाद / डेस्क ( सिद्धार्थ प्रकाश ) : मोदी सरकार द्वारा पेश किया गया तेल क्षेत्र (संशोधन) विधेयक 2024 एक ऐतिहासिक सुधार के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन इसकी असली सच्चाई कुछ और ही बयान करती है। इस कानून का असली लाभ देश की जनता को नहीं, बल्कि केवल मोदी के खास दोस्तों और उनके कारपोरेट मित्रों को मिलेगा।
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कैसे फायदा होगा सिर्फ कुछ लोगों को? कारपोरेट की मुनाफाखोरी का खुला खेल
इस बिल में सिंगल परमिट सिस्टम और वन लाइसेंस पॉलिसी के जरिए पूरी ऊर्जा संपदा कुछ गिने-चुने पूंजीपतियों के हाथों में सौंपी जा रही है। देश के छोटे और मध्यम निवेशकों को इससे बाहर रखने की पूरी योजना है।
विदेशी निवेश की आड़ में राष्ट्रीय संसाधनों की बिक्री
सरकार ग्लोबल इन्वेस्टमेंट को आमंत्रित करने की बात कर रही है, लेकिन असल में यह अडानी-अंबानी जैसे मोदी के दोस्तों को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचाने का जरिया है। विदेशी निवेशक आएंगे, संसाधनों का दोहन करेंगे और मुनाफा लेकर चलते बनेंगे।
मात्र दिखावा है ‘निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा’
सरकार कहती है कि निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा होगी, लेकिन असल में सरकारी कंपनियों को कमजोर कर कारपोरेट कंपनियों के पक्ष में माहौल तैयार किया गया है। ONGC और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को धीरे-धीरे हाशिए पर धकेला जाएगा।
राज्यों के अधिकारों पर सीधा हमला
केंद्र सरकार दावा कर रही है कि राज्यों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे, लेकिन वास्तविकता यह है कि तेल और गैस क्षेत्रों की नीलामी और लाइसेंसिंग पर केंद्र का पूर्ण नियंत्रण होगा। राज्य केवल नाम मात्र के किरायेदार बनकर रह जाएंगे।
पर्यावरण नियमों की अनदेखी होगी?
सरकार ने कठोर पर्यावरणीय अनुपालन की बात तो की है, लेकिन जब बड़े-बड़े कॉर्पोरेट के हाथों में पूरा नियंत्रण होगा, तो नियमों की धज्जियां उड़ना तय है। मोदी के कारोबारी मित्र पहले भी नियमों को ताक पर रख चुके हैं और इस बार भी यही होगा।
यह ऊर्जा सुरक्षा नहीं, ऊर्जा संसाधनों की निजी लूट है!
सरकार इसे ऊर्जा सुरक्षा का नाम दे रही है, लेकिन असली सवाल यह है कि किसकी सुरक्षा? यदि देश के प्राकृतिक संसाधन कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में केंद्रित हो जाएंगे, तो आम नागरिकों को न तो सस्ती ऊर्जा मिलेगी और न ही रोज़गार के अवसर।
जनता के लिए नहीं, मोदी के व्यापारिक मित्रों के लिए बिल!
यदि सरकार वास्तव में इस विधेयक को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना चाहती है, तो इसमें निम्नलिखित बदलाव आवश्यक हैं:
- घरेलू कंपनियों के लिए आरक्षित क्षेत्र, ताकि सिर्फ बड़े कॉर्पोरेट्स का एकाधिकार न हो।
- राज्यों को वास्तविक अधिकार, ताकि वे अपने संसाधनों पर निर्णय ले सकें।
- स्वतंत्र निगरानी तंत्र, जो सुनिश्चित करे कि पर्यावरणीय और आर्थिक नियमों का पालन हो।
- सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी सुनिश्चित करना, ताकि राष्ट्रीय संपत्ति पर केवल निजी हाथों का कब्ज़ा न हो।
यह बिल असल में मोदी सरकार के पूंजीपति मित्रों को देश के ऊर्जा संसाधनों पर एकाधिकार दिलाने का षड्यंत्र है। यह राष्ट्र निर्माण नहीं, बल्कि ‘मित्र निर्माण’ की योजना है! जनता को चाहिए कि वह इस बिल का पुरजोर विरोध करे और अपने संसाधनों की रक्षा करे।