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वक्फ संशोधन विधेयक 2024: अल्पसंख्यक हितों पर हमला?

By Tamishree Mukherjee

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सोशल संवाद / नई दिल्ली :  आरजेडी संसद से सुधाकर सिंह का कहना है कि मैं, सम्मानित सदन में, वक्फ  संशोधन विधेयक 2024 का पुरजोर विरोध करने के लिए खड़ा हूँ। सबसे पहले, मैं राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री लालू प्रसाद यादव जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिन्होंने मुझे इस महत्वपूर्ण विधेयक पर अपनी बात रखने का अवसर दिया।यह विधेयक केवल एक कानून का मसौदा नहीं है, बल्कि यह हमारे संविधान की मूल भावना, लोकतांत्रिक सिद्धांतों, धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों और भारत की बहुलतावादी संस्कृति पर एक सीधा प्रहार है। वक्फ संस्था केवल कानूनी प्रावधानों का समूह नहीं है, बल्कि यह इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाले समुदाय की गहरी मान्यताओं, परंपराओं और सामाजिक जिम्मेदारियों का प्रतिबिंब भी है।

वक्फ बोर्ड भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत एक संवैधानिक और वैधानिक निकाय है, जो सरकारी विभाग की तरह कार्य करता है। यह राज्य सरकार के अधीन होता है और इसके सदस्यों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। यह न तो कोई निजी निकाय है और न ही इसकी भूमि निजी संपत्ति मानी जा सकती है। इस विधेयक के माध्यम से कलेक्टर की नियुक्ति कर वक्फ बोर्ड को कमजोर किया जा रहा है, जिससे हितों के टकराव (Conflict of Interest) की स्थिति उत्पन्न हो रही है। यह एक साजिश है, जिसके द्वारा केंद्र सरकार वक्फ संपत्तियों को हड़पना चाहती है। पिछले दस वर्षों में, जब से भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में आई है, तब से अल्पसंख्यक संस्थानों पर लगातार हमले हो रहे हैं। इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने बार-बार कहा है कि भाजपा सरकार के शासन में संवैधानिक मूल्यों को कमजोर किया जा रहा है। भाजपा स्वयं को अल्पसंख्यक हितैषी बताने का ढोंग करती है, लेकिन भारत की संसद में भाजपा के पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि वे वास्तव में कितने अल्पसंख्यक हितैषी हैं।

आज इनकी नजर अल्पसंख्यक समुदाय की भूमि पर है और कल ये अन्य धार्मिक संस्थानों की संपत्तियों पर भी कब्जा करने की साजिश रच सकते हैं। उदाहरण के लिए, बोधगया के बौद्ध मंदिर ट्रस्ट में बहुसंख्यक लोग अन्य धर्मों से जुड़े हुए हैं, और अब इसी तरह का मॉडल वक्फ संपत्तियों पर भी लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। यदि यही प्रक्रिया जारी रही, तो भविष्य में मंदिरों की भूमि और उनके धन को भी अधिग्रहित करने का प्रयास किया जाएगा।

महोदय, इस विधेयक के द्वारा राज्य सरकार को मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों पर अतिरिक्त विवेकाधीन शक्तियाँ दी जा रही हैं, जबकि पहले से ही मुस्लिम धार्मिक संपत्तियाँ अन्य धर्मों की संपत्तियों की तुलना में अधिक विनियमित (regulated) हैं। यह विधेयक मुतवल्लियों की स्वायत्तता को कमजोर करता है और वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 3A, 3B और 3C में नए प्रतिबंध जोड़कर वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहा है। इसके अलावा, विधेयक के खंड 15 में वक्फ बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति और कार्यकाल से संबंधित धारा 23 में भी संशोधन किया जा रहा है, जो कि एक अन्यायपूर्ण कदम है।संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करने की दिशा में यह अगला कदम है, जहाँ संस्थानों और नौकरशाही को एक विशिष्ट विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध बनाने का प्रयास किया जा रहा है। भाजपा की कथनी और करनी में भारी अंतर है, क्योंकि लोकतंत्र में उसकी कोई आस्था नहीं है। इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने बार-बार कहा है कि संविधान खतरे में है और इस सरकार के हर नए विधेयक से यह बात और अधिक स्पष्ट होती जा रही है।

आजादी के बाद से ही भारत ने धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चलने का प्रयास किया है, जहाँ सभी धर्मों को समान अधिकार और सम्मान मिले। लेकिन हाल के वर्षों में बहुसंख्यकवादी राजनीति और समाज को विभाजित करने वाली शक्तियाँ इस संतुलन को बिगाड़ने में लगी हुई हैं। वक्फ संशोधन अधिनियम 2024 इसी कड़ी का नवीनतम उदाहरण है, जिसमें न केवल अल्पसंख्यकों की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की जा रही है, बल्कि संविधान के मूल सिद्धांतों को भी चुनौती दी जा रही है।माननीय अध्यक्ष महोदय, भाजपा सांसद श्री रविशंकर सिन्हा ने सदन में यह तर्क दिया कि इस विधेयक के माध्यम से वक्फ समितियों में महिलाओं और पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जाएगा। लेकिन मेरा प्रश्न यह है कि जब राम मंदिर ट्रस्ट का गठन किया गया, तब महिलाओं और पिछड़े वर्गों को उसमें आरक्षण क्यों नहीं दिया गया? ऐसा प्रतीत होता है कि जब बहुजन समाज के लिए कानून बनाए जाते हैं, तब उनके लिए अलग नियम बनाए जाते हैं, और जब अल्पसंख्यकों के लिए कानून बनाए जाते हैं, तब उनके लिए अलग नियम थोपे जाते हैं।

देश में 6.5 लाख गाँव हैं, जहाँ हर गाँव में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं। उन्होंने मदरसों, कब्रिस्तानों और अन्य धार्मिक-सामाजिक कार्यों के लिए अपनी भूमि दी है। क्या अब इन कब्रिस्तानों को आमदनी का जरिया बना दिया जाएगा? क्या मदरसे और अनाथालय व्यापारिक संस्थान बन जाएँगे? यह संविधान और कानून के साथ एक क्रूर मजाक है।इसलिए, मैं इस विधेयक का कड़े शब्दों में विरोध करता हूँ और सरकार से अनुरोध करता हूँ कि इसे तुरंत वापस लिया जाए

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