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श्रद्धा, सेवा और शिवभक्ति की मिसाल बनेगी 28 जुलाई को होने वाली पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन की कांवड़ यात्रा

By Tamishree Mukherjee

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श्रद्धा, सेवा और शिवभक्ति की मिसाल बनेगी मारवाड़ी सम्मेलन की कांवड़ यात्रा

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सोशल संवाद / जमशेदपुर (लेखक – मुकेश मित्तल) : भारतवर्ष की महान और पुरातन संस्कृति में कई धार्मिक परंपराएँ आज भी जीवित हैं, जो समाज को आध्यात्मिक बल प्रदान करती हैं। इन्हीं में से एक है “कांवड़ यात्रा”, जो न केवल भक्ति की एक पराकाष्ठा है, बल्कि सेवा, समर्पण और एकता का प्रतीक भी है। यह यात्रा प्रतिवर्ष सावन माह में भगवान शिव की आराधना हेतु की जाती है, जिसमें भक्तजन गंगाजल लाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। इस यात्रा की शुरुआत का उल्लेख हमारे पुराणों में भी मिलता है।

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मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम ने स्वयं गंगाजल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। द्वापर युग में भी श्रीकृष्ण ने कांवड़ यात्रा का महत्व अपने मित्रों को बताया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब विष निकला, तब भगवान शिव ने उसे पीकर संसार को बचाया। उनके ताप को शांत करने हेतु देवताओं और भक्तों ने उन्हें गंगाजल अर्पित किया। तभी से यह परंपरा आरंभ हुई।

कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, यह एक साधना है – तन, मन और आत्मा की। यह यात्रा भक्त को शिव से जोड़ती है, उसे विनम्रता, सहिष्णुता और सेवा का भाव सिखाती है। कठिन रास्तों, तेज धूप या मूसलधार वर्षा में नंगे पाँव चलना, केवल भगवान शिव के प्रति आस्था और प्रेम का जीवंत प्रमाण है।

सनातनियों के लिए क्यों आवश्यक है कांवड़ यात्रा

वर्तमान युग में, जब भौतिकता ने आध्यात्मिकता को दबा दिया है, जब संबंधों में स्वार्थ और जीवन में तनाव बढ़ गया है, तब कांवड़ यात्रा एक नवचेतना देती है। यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि “धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, अपितु समाज और स्वयं के भीतर जागृति का माध्यम है।” सनातन धर्म में पंचमहायज्ञों का उल्लेख मिलता है – देव यज्ञ, पितृ यज्ञ, भूत यज्ञ, ऋषि यज्ञ और मानव यज्ञ। कांवड़ यात्रा इन सभी यज्ञों की एकरूपता है। l

कांवड़ यात्रा के माध्यम से हमें यह भी समझना चाहिए कि सनातन धर्म केवल मंदिरों में सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त है। जब कोई भक्त नंगे पाँव, भगवा वस्त्र धारण कर, “बोल बम” के जयघोष के साथ बढ़ता है, तो वह केवल जल नहीं ढोता, वह अपनी आस्था, श्रद्धा और संस्कृति का भार लिए चलता है।

पूर्वी सिंहभूम ज़िला मारवाड़ी सम्मेलन सम्मेलन द्वारा आयोजित आगामी कांवड़ यात्रा: 28 जुलाई 2025 को होगी । इन्हीं भावनाओं को आत्मसात करते हुए, पूर्वी सिंहभूम ज़िला मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा इस पावन श्रावण माह में एक भव्य और अनुकरणीय कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यह यात्रा 28 जुलाई 2025, दिन सोमवार, सुबह 06:30 बजे प्रारंभ होगी, जिसमें समाज के सभी साथी, भाई-बहनें, बुज़ुर्ग और बच्चे पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ सम्मिलित होंगे।

इस कांवड़ यात्रा की सहयोगी संस्थाएं श्री श्री नीलकंठेश्वर हनुमान मंदिर, काशीडीह और मारवाड़ी समाज, काशीडीह के संयुक्त प्रयास से तैयारियाँ जोरों पर हैं। समाज के सभी घटकों – नारीशक्ति, युवाशक्ति, वरिष्ठ सदस्य – सभी तन और मन से जुटे हुए हैं। कांवड़ सजाने से लेकर, स्वास्थ्य सुविधा, जल व्यवस्था तक – हर छोटी-बड़ी आवश्यकता का ध्यान रखा जा रहा है। सभी कांवड़ियों के लिए मार्ग व्यवस्था, प्रसाद व्यवस्था,  और सुरक्षा की पूरी योजना बनाई गई है। यात्रा के दौरान विभिन्न स्थानों पर झांकियां की प्रस्तुति होगी, जो कांवड़ यात्रा में चार चांद लगाएगी।

भविष्य की दृष्टि – नई पीढ़ी को धर्म से जोड़ने की पहल

आज आवश्यकता है कि हम नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक मूल्यों से जोड़ें। उन्हें यह समझाना होगा कि धर्म केवल अंधविश्वास नहीं, बल्कि जीवन जीने की सर्वोत्तम कला है और कांवड़ यात्रा एक ऐसा माध्यम है, जिसमें संपूर्ण परिवार एक साथ चलता है – बिना भेदभाव, बिना किसी वर्ग या वर्ण की चिंता किए।

चलें, जुड़ें और गढ़ें धर्ममय समाज

सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय मास है। इस मास में किया गया पुण्य, की गई साधना और की गई सेवा – अनंत गुणा फल देती है। कांवड़ यात्रा इस सेवा और साधना का ही संगम है। आइए, हम सब इस वर्ष अपने परिवार, बच्चों और मित्रों के साथ इस यात्रा का हिस्सा बनें।

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