सोशल संवाद/डेस्क/Bihar Bandh 2025: बिहार की राजनीति गुरुवार को तब और गर्मा गई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत माता पर अभद्र टिप्पणी के विरोध में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की महिला मोर्चाओं ने पाँच घंटे का बिहार बंद एलान किया। यह बंद सुबह सात बजे से दोपहर 12 बजे तक प्रभावी रहा। हालांकि आपातकालीन सेवाओं को इससे मुक्त रखा गया, लेकिन राजधानी पटना से लेकर जिलों तक सड़कों पर असर स्पष्ट दिखाई दिया।

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पटना, हाजीपुर, नवादा, बेतिया और आरा समेत कई स्थानों पर भाजपा, जदयू, लोजपा(रा), हम और रालोमो की महिला इकाइयों की नेत्रियां सड़क पर उतरीं और जगह-जगह जाम लगाया। विरोध प्रदर्शन के दौरान “मोदी जी की मां का अपमान नहीं सहेंगे” और “राहुल गांधी माफी मांगो” जैसे नारे गूंजते रहे। राजधानी पटना के कचहरी चौक, हाजीपुर के कारगिल चौक और आरा के मठिया मोड़ पर कार्यकर्ताओं ने घंटों सड़क जाम कर यातायात ठप कर दिया। इससे आम लोगों को थोड़ी परेशानी भी झेलनी पड़ी। हालांकि कई इलाकों में दुकानों और बाजारों पर बंद का मिला-जुला असर दिखा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विवाद को “हर मां, बहन और बेटी के अपमान” के रूप में बताया और कहा कि इस तरह की भाषा लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट करती है। दूसरी ओर, राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस पूरे बंद को “दोहरे मापदंड” की राजनीति करार देते हुए पलटवार किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री खुद भी कई मौकों पर असंवेदनशील टिप्पणियाँ कर चुके हैं और अब भावनात्मक राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस ने भी एनडीए पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यह बंद आयोजित किया गया।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच सच्चाई यही है कि यह विवाद बिहार की राजनीति को और अधिक उग्र बना चुका है। एक ओर एनडीए इसे असम्मानजनक टिप्पणी के खिलाफ जनता की असली आवाज बताने में जुटा है, तो दूसरी ओर महागठबंधन इसे भावनात्मक कार्ड खेलकर जनता को भ्रमित करने की रणनीति बता रहा है। बंद के दौरान महिलाओं की अगुवाई में हुए व्यापक प्रदर्शनों ने यह भी दिखा दिया कि आने वाले चुनावी मौसम में महिला मोर्चा की भूमिका और भी निर्णायक हो सकती है।
बिहार बंद ने न सिर्फ राजनीतिक तापमान बढ़ाया बल्कि यह सवाल भी खड़ा किया कि क्या आने वाले दिनों में इस तरह की बयानबाजी और जवाबी कार्रवाई चुनावी माहौल को और ज्यादा कटु बना देगी।








