---Advertisement---

‘ताज स्टोरी’ विवाद: दिल्ली HC ने कहा—पहले ठीक रिसर्च करो CBFC मंजूरी पर रोक नहीं

By Muskan Thakur

Published :

Follow
‘ताज स्टोरी’ विवाद: दिल्ली HC ने कहा—पहले ठीक रिसर्च करो CBFC मंजूरी पर रोक नहीं

Join WhatsApp

Join Now

सोशल संवाद/डेस्क: दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिनेता परेश रावल अभिनीत फिल्म “द ताज स्टोरी” को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) द्वारा दी गई मंजूरी को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं को खारिज कर दिया। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को यह कहते हुए राहत देने से मना किया कि उनके पास वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है — यानी वे सिनेमैटोग्राफ एक्ट की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार के समक्ष सेंसर बोर्ड के फैसले की समीक्षा के लिए आवेदन कर सकते हैं।

ये भी पढ़े : वर्ल्ड कप फाइनल में पहुँच गई भारतीय महिला टीम, बॉलीवुड सेलेब्स ने दी बधाई

मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोर्ट ऐसी याचिकाओं पर सीधे तौर पर फैसला नहीं दे सकता, क्योंकि यह सेंसर बोर्ड का विषय है, और कानून के तहत इसके लिए एक तय प्रक्रिया है। अदालत ने दोनों याचिकाओं को “वापस ली गई” मानते हुए खारिज कर दिया।

याचिकाकर्ताओं का तर्क

दिल्ली की वकील चेतना गौतम और शकील अब्बास ने अदालत में याचिका दायर कर कहा था कि “द ताज स्टोरी” फिल्म झूठे तथ्यों पर आधारित है और यह एक “मनगढ़ंत इतिहास” को बढ़ावा देती है। उनका कहना था कि फिल्म के ट्रेलर और पोस्टर में ताजमहल के गुंबद को उठाते हुए भगवान शिव की मूर्ति दिखाई गई है, जिससे यह संदेश दिया जा रहा है कि ताजमहल पहले किसी हिंदू मंदिर या देवस्थान पर बना है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, इस तरह की सामग्री न केवल भ्रामक है, बल्कि यह साम्प्रदायिक तनाव बढ़ा सकती है और पर्यटन स्थल पर असंवेदनशील व्यवहार को भी बढ़ावा दे सकती है।

उन्होंने यह भी आग्रह किया कि फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग नहीं की जा रही, बल्कि केवल यह चाहा गया है कि फिल्म के निर्माताओं को यह निर्देश दिया जाए कि वे फिल्म में एक स्पष्ट “डिस्क्लेमर” डालें — जिसमें लिखा हो कि फिल्म में दिखाया गया इतिहास वास्तविक नहीं है।

अदालत की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट कहा कि इतिहास जैसे विषयों पर एक ही दृष्टिकोण नहीं हो सकता। मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने कहा — “इतिहास के मामले में दो इतिहासकारों के विचार अलग-अलग हो सकते हैं। तो कौन-सा संस्करण सही माना जाए? ये ऐसे विषय हैं जिन्हें अदालत तय नहीं कर सकती।” उन्होंने आगे कहा, “क्या हम सेंसर बोर्ड से ऊपर हैं? हमें अपनी सीमाएँ समझनी चाहिए। ऐसे मामलों में भावनाएँ जल्दी भड़क जाती हैं, इसलिए कानून के दायरे में रहकर ही काम करना चाहिए।”

मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं को फटकारते हुए कहा, “आपको याचिका दायर करने से पहले ठीक से रिसर्च करनी चाहिए थी। जब लोग भावनात्मक हो जाते हैं, तो तर्कशक्ति खो देते हैं। ऐसे में कोर्ट को असमंजस की स्थिति में नहीं डाला जा सकता।”

वैधानिक उपाय का ज़िक्र

अदालत ने यह भी बताया कि सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार के पास यह अधिकार है कि वह किसी फिल्म को मिली सेंसर बोर्ड की मंजूरी की समीक्षा कर सकती है या यदि आवश्यक हो तो उसे रद्द भी कर सकती है। इस वजह से अदालत ने याचिकाकर्ताओं को यही सलाह दी कि वे पहले इस प्रक्रिया का सहारा लें।

पृष्ठभूमि

यह विवाद नई फिल्म “द ताज स्टोरी” को लेकर है, जिसमें अभिनेता परेश रावल मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ होते ही यह विवादों में घिर गया था क्योंकि उसमें ताजमहल को लेकर “वैकल्पिक इतिहास” दिखाने की कोशिश की गई है। सोशल मीडिया पर फिल्म के प्रमोशनल पोस्टर्स के बाद कई लोगों ने इसे “सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाला” बताया।

इससे पहले भी ताजमहल को लेकर अदालत में कई बार याचिकाएँ दाखिल की जा चुकी हैं। मई 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी एक याचिका को खारिज किया था, जिसमें मांग की गई थी कि ताजमहल के तथाकथित “बंद 22 कमरों” को खोला जाए ताकि उसकी “वास्तविक ऐतिहासिक सच्चाई” सामने लाई जा सके। उस समय अदालत ने कहा था कि “ऐसे विषय इतिहासकारों और विद्वानों के बीच बहस का विषय हैं, न कि न्यायपालिका के।”

दिल्ली हाईकोर्ट का ताज़ा फैसला भी उसी दिशा में संकेत देता है — कि कला, सिनेमा और इतिहास जैसे विषयों पर अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं जब तक कोई स्पष्ट कानूनी उल्लंघन न हो। अदालत ने फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने से इनकार करते हुए केवल यह कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो केंद्र सरकार के समक्ष पुनर्विचार का आवेदन दे सकते हैं।

इस पूरे प्रकरण में अदालत का मुख्य संदेश साफ था — भावनाओं के बजाय तथ्यों पर आधारित रिसर्च ज़रूरी है। फिल्म चाहे विवादित हो, लेकिन उसका मूल्यांकन कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में ही किया जाना चाहिए।

FAQ : ‘द ताज स्टोरी’ विवाद पर सामान्य प्रश्न

प्रश्न 1: ‘द ताज स्टोरी’ फिल्म पर विवाद क्यों हुआ?
उत्तर: फिल्म में यह दिखाया गया है कि ताजमहल पहले किसी हिंदू मंदिर या देवस्थान पर बना था। इस दावे को “झूठा और भ्रामक” बताते हुए कुछ याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती दी।

प्रश्न 2: दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया?
उत्तर: अदालत ने याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता पहले केंद्र सरकार के पास जाकर CBFC के फैसले की समीक्षा की मांग करें।

प्रश्न 3: क्या फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगेगी?
उत्तर: नहीं। अदालत ने फिल्म की रिलीज़ पर कोई रोक नहीं लगाई है।

प्रश्न 4: सेंसर बोर्ड के फैसले की समीक्षा कैसे की जा सकती है?
उत्तर: सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार CBFC के किसी भी निर्णय की समीक्षा या रद्द कर सकती है।

प्रश्न 5: क्या इससे पहले भी ऐसे मामले सामने आए हैं?
उत्तर: हाँ, 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी ताजमहल की “वास्तविक इतिहास” की जांच को लेकर याचिका दायर की गई थी, जिसे अदालत ने यह कहते हुए खारिज किया था कि ऐसे मुद्दे इतिहासकारों के विमर्श का विषय हैं, न कि अदालतों का

YouTube Join Now
Facebook Join Now
Social Samvad MagazineJoin Now
---Advertisement---