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आखिर भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र कैसे मिली , जाने सुदर्शन चक्र की कहानी

सोशल संवाद/ डेस्क : सुदर्शन चक्र के बारे में तो आप सबने सुना ही होगा ।  शिव जी को त्रिशूल के बिना और भगवान् विष्णु को सुदर्शन के बिना कल्पना ही नहीं किया जा सकता ।

कहते हैं कि सुदर्शन चक्र एक ऐसा अचूक अस्त्र था कि जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और उसका काम तमाम करके वापस छोड़े गए स्थान पर आ जाता था। चक्र को विष्णु की तर्जनी अंगुली में घूमते हुए बताया जाता है। सबसे पहले यह चक्र उन्हीं के पास था। सिर्फ देवताओं के पास ही चक्र होते थे। चक्र सिर्फ उस मानव को ही प्राप्त होता था जिसे देवता नियुक्त करते थे। पुराणों के अनुसार विभिन्न देवताओं के पास अपने-अपने चक्र हुआ करते थे। सभी चक्रों की अलग-अलग क्षमता होती थी और सभी के चक्रों के नाम भी होते थे। महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र था।

भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति से सम्बन्धित एक कथा प्रचलित है

एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए, तब सभी देवता श्री हरी विष्णु  के पास आए। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत  पर जाकर भगवान् शिव  की विधिपूर्वक आराधना की। वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे। वे प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प  भगवान शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूँढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला। तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया।

विष्णु की भक्ति  देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और श्रीहरि के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान माँगा। तब भगवान शंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार किया। इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।

सुदर्शन चक्र, ब्रह्मास्त्र के समान ही अचूक था। हालांकि यह ब्रह्मास्त्र की तरह विध्वंसक नहीं था लेकिन इसका प्रयोग अतिआवश्यक होने पर ही किया जाता रहा है, क्योंकि एक बार छोड़े जाने पर यह दुश्मन को खत्म करके ही दम लेता था।

इस आयुध की खासियत थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से मिलकर प्रचंड वेग से अग्नि प्रज्वलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत सुंदर, तीव्रगामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक अस्त्र था।

परमाणु बम के समान ही सुदर्शन चक्र के विज्ञान को भी अत्यंत गुप्त रखा गया है। गोपनीयता इसलिए रखी गई होगी कि इस अमोघ अस्त्र की जानकारी देवताओं को छोड़ दूसरों को न लग जाए अन्यथा अयोग्य और गैरजिम्मेदार लोगों द्वारा इसका दुरुपयोग हो सकता था।

यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इसकी ऊपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसके साथ ही इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष थे जिसे द्विमुखी पैनी छुरियों में रखा जाता था। इन पैनी छुरियों का भी उपयोग किया जाता था। इसके नाम से ही विपक्षी सेना में मौत का भय छा जाता था। यह खुद जितना रहस्यमय है उतना ही इसका निर्माण और संचालन भी। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया।

भगवान श्रीकृष्ण के पास यह देवी की कृपा से आया। इसी चक्र से इन्होंने जरासंध को पराजित किया था, शिशुपाल का वध भी इसी चक्र से किया गया था। कहा ये भी जात अहै श्री कृष्ण को परशुराम जी से प्राप्त हुआ था क्योंकि रामावतार में परशुराम जी को भगवान राम ने चक्र सौंप दिया था और कृष्णावातार में वापस करने के लिए कहा था।

सुदर्शन चक्र इच्छाशक्ति के आधार पर चलने वाला शस्त्र है। इस चक्र को फेंका नहीं जाता है।शास्त्रों में सुदर्शन चक्र का डिजाइन भी दिया हुआ है। इसके आधार पर कोई भी इंजीनियर सुदर्शन चक्र जैसा दूसरा चक्र आसानी से बना सकता है, लेकिन आज तक ऐसा कोई नहीं कर पाया इसके पीछे प्रमुख कारण है सुदर्शन चक्र का ईंधन।  सुदर्शन चक्र तो बनाया जा सकता है परंतु उसे उतनी गति से घुमाया नहीं जा सकता, जितनी गति से भगवान विष्णु द्वारा धारण और उपयोग किया जाता था। शास्त्रों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि सुदर्शन चक्र को संचालित करने के लिए न्यूक्लियर फ्यूजन का उपयोग किया जाता है। जो प्रकृति में मात्र सूर्य के अंदर होता है। यही कारण है कि सुदर्शन चक्र जैसे घातक शस्त्र के निर्माण में चांदी का उपयोग किया गया। क्योंकि चांदी की इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी सबसे ज्यादा होती है। कहा ये भी जाता है  ‌‌‌इस अस्त्र को बनाने की विधि को गुप्त रखा गया है। ताकि कोई इस विधि से ऐसा अस्त्र नहीं बना सके ।

हमारा विज्ञान इतना तो संपन्न हो गया कि चांदी और लोहे का उपयोग करते हुए हुबहू सुदर्शन चक्र बनाया जा सकता है और उसे इच्छाशक्ति के आधार पर कहीं पर भी भेजा जा सकता है और वापस बुलाया जा सकता है लेकिन दुनिया भर के वैज्ञानिक आज भी यह प्रयास कर रहे हैं कि किस प्रकार सूर्य के अंदर मौजूद न्यूक्लियर फ्यूजन का उपयोग करते हुए ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।  ऐसा कहा जाता है कि चक्र में छह तीलियां हैं और इसका केंद्र वज्र से बना है। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक तीली पर “सहस्रत् हम फट्” शब्द अंकित है।  श्री वासुदेवशरण अग्रवाल इसे इस प्रकार व्यक्त करते हैं: चक्र को समय का चक्र (कालचक्र) कहा गया है। इसमें बारह तीलियाँ और छह नाभियाँ हैं। बारह तीलियाँ बारह महीनों का प्रतिनिधित्व करती हैं और छह नाभियाँ छह ऋतुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।  चक्र का आकार इतना छोटा है कि इसे तुलसी के पौधे की एक पत्ती की नोक पर रखा जा सकता है। साथ ही यह इतना विशाल है कि इसमें संपूर्ण ब्रह्मांड समा सकता है।

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