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एक माह बाद नहीं बजेगी शहनाई, नहीं होंगे कोई भी मांगलिक कार्य, 6 जुलाई को मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी

By Annu kumari

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सोशल संवाद/ डेस्क: जुलाई से सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी, कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होगा। 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं, और उनके इस शयनकाल को ‘चातुर्मास’ कहा जाता है।

चातुर्मास की अवधि में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन और नए व्यवसाय का शुभारंभ आदि वर्जित माने जाते हैं। इस दौरान भक्तगण जप-तप, ध्यान और धार्मिक अनुष्ठानों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, क्योंकि यह समय आध्यात्मिक उन्नति के लिए विशेष फलदायी होता है। देवशयनी एकादशी का यह पर्व हमें भक्ति, संयम और आत्मचिंतन का संदेश देता है, जो जीवन में संतुलन और शांति बनाए रखने के लिए आवश्यक है। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस वर्ष देवशयनी एकादशी का व्रत किस दिन रखा जाएगा और पारण का सही समय क्या है। साथ ही देवशयनी एकादशी की पूजा विधि और जाप मंत्र भी जानेंगे।

  • वैदिक पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी 2025 आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाएगी। इस साल यह पर्व 6 जुलाई 2025, रविवार को होगा। एकादशी तिथि 5 जुलाई को शाम 6:58 बजे शुरू होगी और 6 जुलाई को रात 9:14 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार 6 जुलाई को ही यह व्रत रखा जाएगा। पारण (व्रत तोड़ने) का समय 7 जुलाई को सुबह 5:29 बजे से 8:16 बजे तक रहेगा। इस दिन सूर्य मिथुन राशि में होगा, और चातुर्मास की शुरुआत होगी, जो 1 नवंबर तक चलेगा।देवशयनी एकादशी तिथि प्रारम्भ: 5 जुलाई 2025, शाम 6:58 बजे  
  • देवशयनी एकादशी तिथि समाप्त: 6 जुलाई 2025, रात 9:14 बजे  
  • व्रत की तिथि: 6 जुलाई 2025 (उदया तिथि के अनुसार)  
  • पारण समय: 7 जुलाई 2025, सुबह 5:29 बजे से 8:16 बजे तक
    देवशयनी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें, फिर विष्णु जी को पीले फूल, तुलसी पत्र, और पंचामृत अर्पित करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद देवशयनी एकादशी की कथा सुनें और भगवान को केले का भोग लगाएं। पूजा के बाद दीप जलाएं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। अंत में प्रसाद वितरित करें और जरूरतमंदों को दान दें। यह व्रत निर्जला या फलाहारी हो सकता है, जिसमें अनाज और नमक से परहेज करें।
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