सोशल संवाद/डेस्क : केन्द्र सरकार द्वारा आदिवासियों की रूढ़िवादी प्रथा एवं परम्पराओं की रक्षा के लिए लाए गए इस कानून को लगभग सभी आदिवासी बहुल राज्यों ने लागू कर दिया है। लेकिन राज्य बनने के 25 साल बाद भी, झारखंड में यह अधिनियम लागू नहीं हो पाया है। क्या आपने कभी सोचा है कि अदालत द्वारा बार-बार कहने के बावजूद, झारखंड की गठबंधन सरकार पेसा कानून को क्यों नहीं लागू करना चाहती है?

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मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए मैने पेसा अधिनियम की समीक्षा की थी, और पारंपरिक ग्राम सभाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कुछ विशेष प्रावधान भी जुड़वाए थे। हमने सभी बालू घाटों एवं लघु खनिजों के खनन को ग्राम सभा को सौंपने का प्रस्ताव रखा था, ताकि ग्राम सभा सशक्त हो सके। लेकिन साल भर बाद भी, सरकार पेसा को लागू ही नहीं करना चाहती है।
एक बार पेसा लागू होने के बाद, गांव में किसी भी प्रकार की सभा करने अथवा धार्मिक स्थलों का निर्माण करने से पहले ग्राम सभा एवं पारंपरिक ग्राम प्रधान (पाहन, मांझी बाबा, मानकी मुंडा, पड़हा राजा आदि) की अनुमति लेनी होगी। इस से ना सिर्फ हमारी पारंपरिक व्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि धर्मांतरण भी रुकेगा। लेकिन सरकार को शायद यह मंजूर नहीं है।
दरअसल सरकार यह चाहती ही नहीं है कि आदिवासी समाज की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था मजबूत हो। उनका लक्ष्य आदिवासी समाज को सिर्फ “अबुआ-अबुआ” में उलझाए रखना है, ताकि वे कोई सवाल ना पूछ सके। सरकार के इसी रवैये और हमारी पारंपरिक व्यवस्था में हस्तक्षेप के खिलाफ, पिछले हफ्ते चाईबासा में “मानकी मुंडा संघ” ने विरोध-प्रदर्शन किया था।
एक बात और, कई स्व-घोषित आदिवासी (?) बुद्धिजीवी आपको पेसा के मुद्दे पर गुमराह करने का प्रयास करेंगे। ये वही लोग हैं, जो कोर्ट में हमारी पारंपरिक व्यवस्था पर लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को थोपने के लिए केस लड़ रहे थे, लेकिन इनकी याचिका को अदालतों ने कई बार खारिज किया है।
आदिवासी संस्कृति का मतलब सिर्फ पूजन पद्धति नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन शैली है। जन्म से लेकर शादी-विवाह एवं मृत्यु तक, हमारे समाज की सभी प्रक्रियाओं को मांझी परगना, पाहन, मानकी मुंडा, पड़हा राजा एवं अन्य पूरा करवाते हैं। जबकि धर्मांतरण के बाद वे लोग सभी प्रक्रियाओं के लिए चर्च में जाते हैं। वहाँ “मरांग बुरु” या “सिंग बोंगा” की पूजा होती है क्या?
अगर इस धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो भविष्य के हमारे सरना स्थलों, जाहेरस्थानों, देशाउली आदि में कौन पूजा करेगा? ऐसे तो हमारी संस्कृति ही खत्म हो जायेगी? हमारा अस्तित्व ही मिट जायेगा।
इस राज्य में कुछ लोगों को “रूढ़िवादी परम्परा मानने वाले आदिवासियों” के हाथों में शक्ति एवं अधिकार देना मंजूर नहीं है। पेसा अधिनियम का लक्ष्य हमारी पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करना है, और इसे उसी तरह से लागू किया जाना चाहिए। #PESA








