March 23, 2025 9:01 pm

इलाहाबाद हाईकोर्ट जज का कमेंट- प्राइवेट पार्ट पकड़ना रेप नहीं:केंद्रीय मंत्री बोलीं- समाज में ऐसे फैसलों के लिए जगह नहीं, सुप्रीम कोर्ट एक्शन ले

Allahabad High Court

सोशल संवाद/डेस्क : यूपी के कासगंज की 11 साल की बच्ची के केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। भाजपा की राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, अगर जज ही संवेदनशील नहीं होंगे, तो महिलाएं और बच्चियां क्या करेंगी? उन्होंने कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, उन्हें किसी भी कृत्य के पीछे की मंशा को देखना चाहिए। रेखा शर्मा ने मांग की कि NCW को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए।

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सांसद ने यह भी कहा कि जजों को समझाया जाना चाहिए कि वे ऐसे फैसले नहीं दे सकते। यह पूरी तरह गलत है, और मैं इसके खिलाफ हूं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, किसी नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना या उसे घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश करना रेप या रेप की कोशिश का मामला नहीं बनता है।

हाईकोर्ट ने गंभीर आरोपों में संशोधन करने का आदेश दिया 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने केस को अपराध की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच का अंतर बताया। साथ ही निचली अदालत के द्वारा तय गंभीर आरोप में संशोधन का आदेश दिया। अदालत ने 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली।

अदालत ने आरोपी आकाश और पवन पर IPC की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत लगे आरोपों को घटा दिया। अब उन पर धारा 354 (b) (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और POCSO अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलेगा। निचली अदालत को नए सिरे से सम्मन जारी करने का निर्देश दिया।

लिफ्ट देने के बहाने किया यौन उत्पीड़न 

कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई। आरोप लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए।

पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया। लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी।

लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए। इसके बाद, जब पीड़िता की मां आरोपी पवन के पिता अशोक के घर गईं, तो उन्होंने गाली-गलौज और धमकी दी। जब पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की, तो उन्होंने अदालत का रुख किया।

आरोपियों ने निचली अदालत के आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण ली।

जस्टिस ने कहापेनेट्रेटिव सेक्स की कोशिश के आरोप नहीं 

जस्टिस राम मनोहर मिश्र ने 17 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा, रेप के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को साबित करना होगा कि मामला केवल तैयारी से आगे बढ़ चुका था। तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंदर दृढ़ संकल्प की अधिकता में है। इस मामले में अभियुक्त आकाश पर आरोप है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसका नाड़ा तोड़ दिया। लेकिन गवाहों ने यह नहीं कहा कि इसके कारण पीड़िता के कपड़े उतर गए। न ही यह आरोप है कि अभियुक्त ने पीड़िता से पेनेट्रेटिव सेक्स की कोशिश की।

सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐसा ही फैसला 

19 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का फैसला पलट दिया था। कहा था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य पॉक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन हमला माना जाएगा। इसमें महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क।

बॉम्बे हाईकोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी, 2021 में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि किसी नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो में अपराध नहीं मान सकते। हालांकि बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया।

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