सोशल संवाद / डेस्क (रिपोर्ट:तमिश्री )- कुछ दिनों पहले हिमाचल प्रदेश में त्रासदी आई। इस बाढ़ में कई इमारते ,पूल ,बिल्डिंग और भी बोहोत कुछ बह गया। आधुनिक तकनीक से बने उछातम श्रेणी के सभी इमारते ढेह गयी पर ये 500 साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर शान से खड़ा रहा। मंदिर का बाल तक बांका नहीं हुआ। इस मंदिर ने साबित कर दिया की ऐताहिस्कता आधुनिकता को मात देने में सक्षम है।
इस मंदिर का नाम है पंचवक्त्र मंदिर । इस मंदिर के कारण प्रकृति के प्रकोप के आगे इंसानी आस्था भारी पड़ रही है। यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है और व्यास नदी में आई भीषण बाढ़ में भी ज्यों का त्यों खड़ा रहा। इस मंदिर में भगवान शिव की विशाल पंचमुखी महादेव की प्रतिमा स्थापित है, जो भगवान शिव के पांच स्वरूपों को दर्शाती है। मंदिर को त्रिलोकीनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी भक्त यहां शिव का ध्यान करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और आशीर्वाद बना रहता है। हिमाचल प्रदेश के मंडी को छोटी कशी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि जिस तरह काशी गंगा नदी के तट पर स्थित है, उसी तरह मंडी ब्यास नदी के तट पर स्थित है।
यह मंदिर सुकेती और ब्यास नदियों के संगम पर स्थित है। बताया जाता है कि यह मंदिर 500 साल पुराना है और इसे तत्कालीन राजा सिद्ध सेन (1684-1727) ने बनवाया था। मंदिर के गर्भाग्रिहा में मौजूद भगवान शिव की पंचमुखी प्रतिमा को सामने से देखने पर केवल तीन चेहरे दिखाई देते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार ब्यास नदी की तरफ है और इसके दोनों ओर द्वारपाल हैं। पंचमुखी महादेव के साथ नंदी की भी भव्य मूर्ति है, जिसका मुख गर्भगृह की दिशा में है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने पंचवक्त्र महादेव मंदिर को राष्ट्रीय स्थल घोषित किया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों ने अपने निर्वासन के दौरान इसी स्थान पर भगवान शिव से आशीर्वाद मांगा था। मंदिर के अंदर का शांत वातावरण रोजमर्रा की जिंदगी की उथल-पुथल से राहत देता है। भक्त अक्सर ध्यान और प्रार्थना में संलग्न रहते हैं, खुद को मंदिर परिसर में व्याप्त दिव्य ऊर्जा में डुबो देते हैं। अपने आध्यात्मिक महत्व से अलग, पंचवक्त्र मंदिर वास्तुशिल्प चमत्कारों का खजाना है। पौराणिक दृश्यों और देवताओं को दर्शाती जटिल पत्थर की नक्काशी बीते युग में ले जाती है।
इसी मंदिर को डूबा देख हर किसी को केदारनाथ मंदिर की याद आ गयी जो 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के बीच भी खड़ा था।
आप सबको बता दे की मंदिर को अब खोला गे है। विशेषज्ञों के अनुसार बार से मंदिर के नीव को कोई नुकसान नहीं पंहुचा है। अब इसे चमत्कार कहे या सर्वोत्तम वास्तुकला का उद्धरण ,पर इतनी भरी बारिश और बाद झेलने की क्षमता हर इमारत में नहीं है। उस भीषण बाढ़ ने आधुनिक कंक्रीट संरचनाओं को निगल लिया पर भारी चट्टानों पर बना 16वीं शताब्दी के इस मंदिर पर कोई असर नहीं पड़ा।
मंदिर के पुजारी ने बताया कि जलस्तर घटने के बाद मंदिर में 12-13 फीट रेत जमा हो गई है।लेकिन “भगवान शिव की मूर्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ। नंदी की पूरी मूर्ति 12 फुट ऊंचे रेत के टीले से ढँक गई थी। मंदिर की बाहरी सीमा की दीवारों को थोडा नुकसान हुआ है।” भले ही मंदिर में मलबा आ गया है, लेकिन इसकी दिव्यता और भव्यता पर कोई असर नहीं पड़ा है।परिक्रमा के लिए मंदिर का प्रांगण भी मलबे में दबा हुआ है। घुप अंधेरे में कहां रेत है और कहां दलदल इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि जल्दी प्रशासन के साथ मिलकर इस मंदिर की भव्यता और पुनर्निर्माण का काम शुरू होगा। लेकिन फिलहाल महादेव की मूर्ति रेत की परत से ढक गई है और उनके दर्शन करना अभी मुश्किल है।यह ऐतिहासिक प्राचीन शिव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है और इसीलिए स्थानीय लोग मानते हैं कि सिर्फ महादेव की कृपा से ही उनका प्रदेश बाख गया। मंडी के लोग मानते हैं कि महादेव की छोटी काशी के प्रभाव ने प्रकृति के प्रकोप को कम कर दिया और हिमाचल को बड़ी तबाही से बचा लिया।