सोशल संवाद/डेस्क : बॉलीवुड जगत के लिए 14 नवंबर 2025 की सुबह एक दुखद ख़बर लेकर आई। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की वरिष्ठतम और बेहद सम्मानित अभिनेत्रियों में शामिल कामिनी कौशल का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहीं कामिनी ने अंतिम सांस लेते हुए अपने पीछे एक ऐसा विरासत-भरा सफर छोड़ा है, जिसे भारतीय सिनेमा हमेशा याद रखेगा। उनका जाना उस स्वर्णिम युग का अंत भी माना जा रहा है, जिसने भारतीय फिल्मों की बुनियाद को मजबूत किया।

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कामिनी कौशल का करियर जितना विस्तृत रहा, उतना ही प्रेरणादायक भी। अपने समय में जब महिलाएं फिल्मों में आने से हिचकती थीं, उन्होंने न सिर्फ बतौर नायिका अपनी पहचान बनाई, बल्कि दशकों तक ऐसे किरदार निभाए, जो आज भी दर्शकों की स्मृतियों में ताज़ा हैं। उनकी अभिनय शैली, सहजता और संवाद पर मजबूत पकड़ उन्हें समकालीन अभिनेत्रीओं से अलग करती थी।
लाहौर से मुंबई तक का सफर
कामिनी कौशल का जन्म 24 जनवरी 1927 को लाहौर में उमा कश्यप के रूप में हुआ। वह प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री प्रोफेसर एस.आर. कश्यप की सबसे छोटी बेटी थीं। मात्र सात वर्ष की आयु में पिता को खो देने के बाद भी उमा की जिज्ञासा और रचनात्मकता कम नहीं हुई। दस साल की उम्र में उनका अपना कठपुतली थिएटर था, और उसी दौरान उन्होंने आकाशवाणी पर रेडियो प्ले करना शुरू कर दिया।
उमा का फिल्मों में आना भी एक दिलचस्प कहानी है। उनकी मधुर आवाज़ सुनकर फिल्म निर्देशक चेतन आनंद प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी फिल्म नीचा नगर में उन्हें मौका दिया। इसी दौरान उनका नाम बदलकर ‘कामिनी’ रखा गया, ताकि निर्देशक की पत्नी ‘उमा’ के नाम से भ्रम न हो। साल 1946 में जब नीचा नगर रिलीज़ हुई, तब कामिनी मात्र 20 वर्ष की थीं। फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली और यह कान फिल्म फेस्टिवल में प्रतिष्ठित गोल्डन पाम सम्मान जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी। इस फिल्म की सफलता ने कामिनी कौशल को रातों-रात लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया।
अभिनय करियर की चमक
1940 और 50 के दशक में कामिनी कौशल ने कई यादगार फिल्मों में काम किया। शहीद, नदिया के पार, जिद्दी, शबनम, आरजू और राज कपूर की आग जैसी फिल्मों में उनके प्रदर्शन को खूब सराहा गया। 1954 में फिल्म बिराज बहू के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। यह सम्मान न सिर्फ उनके अभिनय कौशल की पुष्टि था, बल्कि उस दौर की सबसे सशक्त अभिनेत्रियों में उनकी पहचान को स्थायी बनाने वाला साबित हुआ।
एक समय आया जब कामिनी ने धीरे-धीरे नायिका से चरित्र भूमिकाओं की ओर रुख किया। मनोज कुमार के साथ उन्होंने स्क्रीन पर मां के किरदार में जो वास्तविकता लाई, वह लंबे समय तक चर्चा में रही। बाद के वर्षों में उन्होंने हर पीढ़ी के कलाकारों के साथ काम किया और अपने अनुभव को कभी भी उम्र के दायरे में सीमित नहीं होने दिया।
नई पीढ़ी के लिए भी परिचित चेहरा
समय के साथ जब फिल्म इंडस्ट्री बदल रही थी, कामिनी कौशल की उपस्थिति फिर भी कायम रही। चेन्नई एक्सप्रेस में शाहरुख खान की दादी और कबीर सिंह में शाहिद कपूर की दादी का किरदार निभाते हुए भी उन्होंने यह साबित किया कि उम्र चाहे कुछ भी हो, अभिनय की चमक कभी फीकी नहीं पड़ती।
एक युग का अंत
कामिनी कौशल का निधन सिर्फ एक महान अभिनेत्री के जाने भर की घटना नहीं है, बल्कि यह उस युग के खत्म होने जैसा है, जिसने भारतीय सिनेमा को भावनाओं, संवेदनाओं और सरलता की नई परिभाषाएँ दीं। उनकी अभिनय यात्रा युवा कलाकारों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
कामिनी कौशल ने जीवन भर सादगी, गरिमा और समर्पण के साथ काम किया। आज उनके संसार से चले जाने के बाद भी हिंदी सिनेमा उन्हें उतनी ही श्रद्धा से याद करेगा, जितना उनके जीवित रहते हुए किया। उनका योगदान, उनकी फिल्मों की तरह, हमेशा अमर रहेगा।








