सोशल संवाद / जमशेदपुर : ये पोस्टर पटना में जेडीयू ऑफिस के गेट पर लगा है। पिछले कई दिनों से बिहार में नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के राजनीति में आने की अटकलें लगाई जा रही हैं। जेडीयू और सहयोगी दलों के नेता खुलकर बोलने लगे हैं। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने भी आज निशांत के समर्थन में पोस्ट किया है।
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जेडीयू के दर्जन भर से ज्यादा सांसद, पूर्व सांसद, विधायक, पूर्व विधायक और पदाधिकारी निशांत के पक्ष में बयान दे चुके हैं। अब जिस तरह से लगातार मीडिया के सामने आकर निशांत भी बयान दे रहे हैं उससे लग रहा है कि कहीं न कहीं कुछ तो पक रहा है।
वैसे पार्टी के नेता आधिकारिक तौर पर निशांत के राजनीति में आने की अटकलें खारिज कर रहे हैं। लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि निशांत राजनीतिक खबरों में इन दिनों दिलचस्पी ले रहे हैं। संगठन और सरकार के कामकाज के प्रचार प्रसार को लेकर चल रहे कार्यक्रमों की जानकारी ले रहे हैं। एक नेता ने तो यहां तक बताया है कि मुख्यमंत्री से मिलने जा रहे नेताओं से उनकी मुलाकात हो रही है। जबकि पहले वो किसी से भी मिलने में झिझकते थे।
पिछले दिनों ये खबर आई कि नालन्दा की हरनौत सीट से निशांत को चुनाव लड़ाया जा सकता है। 1995 में आखिरी बार नीतीश इस सीट से विधायक चुने गए थे। तब से नीतीश का ये अभेद्य किला है। नीतीश ने भी राजनीतिक पारी की शुरुआत हरनौत से ही की थी।
नीतीश वैसे तो खुद परिवारवादी राजनीति के विरोधी रहे हैं। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनके कार्यकाल में भी परिवारवादी राजनीति को मजबूती मिली है। अशोक चौधरी, रामनाथ ठाकुर, महेश्वर हजारी, जयंत राज, आनंद मोहन परिवार जैसे कई उदाहरण हैं।
लालू यादव की परिवारवादी राजनीति पर भले ही नीतीश कुमार हमलावर रहते हों लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि नीतीश कुमार ने ही 2015 में अपने समर्थन से पहली बार तेजस्वी और तेजप्रताप को सदन पहुंचाया था। ऐसे में ये मानना कि परिवार वाद को लेकर उनका स्टैंड बहुत ठोस रहा है तो सही नहीं है।
सूत्रों की मानें तो बीजेपी चाहती है कि नीतीश कुमार निशांत की एंट्री को मंजूरी दे। इससे नीतीश कुमार को जल्द सक्रिय राजनीति से दूर करने में मदद मिलेगी। निशांत अभी सामाजिक रूप से बहुत सक्रिय नहीं हैं। पिछले कुछ सालों से खुद को अध्यात्म पर ज्यादा फोकस कर रखा है। बाकी नेता पुत्रों की तरह ताम झाम में नहीं रहते।
