सोशल संवाद /डेस्क : चैत्र नवरात्र का आज तीसरा दिन है और देवी दुर्गा पाठ के साथ इस समय शारदा सिन्हा के छठ गीत गूंजने लगे हैं। आज से चार दिवसीय चैती छठ की शुरुआत नहाय खाय से हो रही है। प्रकृति के देव सूर्य की उपासना का महापर्व शुरू हो गया है।लोक आस्था के महापर्व छठ की जो भी बातें कार्तिक मास के मुख्य छठ पर्व पर होती हैं, वही चैती छठ में भी लागू हैं।
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आज नहाय खाय है। लोग सुबह से ही गंगा नदी के तट पर पहुंच रहे हैं। जहां गंगा नहीं, वहां गंगाजल से नहाकर व्रती आज बाकी काम करेंगे। चैती छठ को लेकर मान्यता है कि सुख-समृद्धि को लेकर मनोकामना पूरी होने पर मन्नत के अनुसार एक, तीन या पांच साल तक यह व्रत करते हैं या फिर मनोकामना पूरी होने तक। चैती छठ कार्तिक छठ की तरह अमूमन पोखर पर नहीं किया जाता है।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के इक्का-दुक्का घाटों पर यह छठ होता है। ज्यादातर लोग घरों में ही करते हैं। कार्तिक महीने में मिलने वाले कई फल चैती माह में नहीं मिलते हैं, इसलिए ऋतुफल का इंतजाम किया जाता है।आज नहाय-खाय है। सुबह से ही सीढ़ी घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी पड़ी। सुबह में बड़ी संख्या में छठ व्रती शहर के बूढ़ी गंडक नदी घाट पर स्नान-ध्यान और पूजन करने पहुंचे।
स्नान के बाद पवित्र जल लेकर वे अपने घर लौटे, जहां आज पहला प्रसाद रूपी भोजन ग्रहण किया गया। प्रसाद के रूप में अरवा चावल, सेंधा नमक से बनी चने की दाल, लौकी की सब्जी और आंवला की चटनी आदि ग्रहण की जाएगी। इसके साथ ही चार दिवसीय इस महाअनुष्ठान का संकल्प लिया जाएगा।कार्तिक छठ की तरह ही चैती छठ का व्रत भी आम तौर पर महिलाएं ही करती हैं।
इस बार लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व चैती छठ एक अप्रैल से शुरू हुआ है। सोमवार को नहाय-खाय से इसकी शुरुआत हो रही है। व्रती स्नान-ध्यान कर नया वस्त्र धारण कर पर्व के लिए गेहूं धोकर सुखाएंगी। गर्मी खूब है, इसलिए आज इसमें ज्यादा समय नहीं लगेगा। गेहूं सुखाने में भी काफी निष्ठा रखनी पड़ती है। इसके बाद व्रती भोजन में अरवा चावल का भात और कद्दू की सब्जी बनाती हैं।
और खुद के साथ पूरे परिवार को नहाकर ही खाने के लिए कहा जाता है। दो अप्रैल मंगलवार को खरना होगा। इस दिन व्रती दिनभर उपवास रखेंगी। शाम में खीर और सोहारी का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी के जलावन से बनाया जाएगा। प्रसाद बन जाने के बाद व्रती एक बार फिर स्नान-ध्यान कर रात में छठी मईया को प्रसाद का भोग अर्पित करती हैं। भोग लगाने के बाद व्रती इसी प्रसाद को ग्रहण करेंगी और फिर शुरू हो जाएगा 36 घंटे का निर्जला अनुष्ठान। गुरुवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जागा और शुक्रवार को उदीयमान सूर्य को जल अर्पित कर महापर्व का समापन होगा।