सोशल संवाद/डेस्क : माहवारी अवकाश को लेकर देश में एक बार फिर बहस गरम है। कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं और छात्राओं को मासिक धर्म में छुट्टी की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि इस तरह के मामले पर आदेश देने से कंपनियां महिलाओं को काम पर रखने से परहेज करेंगी। यह सच है कि वर्तमान समय में देश को सशक्त बनाने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है।
महिलाएं कुशल और अकुशल श्रमिक के रूप में हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं। ऐसे में माहवारी अवकाश महिलाओं की कार्य कुशलता को प्रभावित करेगा। इस जनहित याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 की धारा 14 के अनुपालन के लिए केंद्र और सभी राज्यों को छात्राओं तथा कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म के दौरान सवैतनिक अवकाश की मांग की गई थी, पर सुप्रीम कोर्ट ने माहवारी अवकाश को महिलाओं के लिए अलाभकारी निर्णय बताया। न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ‘नीतिगत विचारों के संबंध में यह उचित होगा कि याचिकाकर्ता महिला और बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करें।
देखा जाए तो औरतों की माहवारी एक गैर-जरूरी बहस का विषय बनकर रह गई है। सोचने वाली बात है कि औरतों को माहवारी के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा। मगर महिला एवं विकास मंत्री ने एक नई बहस छेड़ कर इसे राजनीति के केंद्र में ला दिया है। यह सच है कि मासिक धर्म कोई विकलांगता नहीं है, यह एक नैसर्गिक प्रक्रिया है।
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