सोशल संवाद / डेस्क : भारत के प्राचीन मंदिरों में चमत्कार तो होते ही है। इसीलिए तो लोगो में भगवान् में आस्था भी बनी हुई है । लेकिन साथ साथ इन मंदिरों की खूबसूरती , वास्तुकला और बनावट आज के बड़े बड़े आकर्षक इमारतों को कड़ी टक्कर देती है। वैसा ही एक मंदिर है मध्य प्रदेश का धर्मराजेश्वर मंदिर। इसे कैलाश मंदिर की ही तरह एक ही पत्थर को तराशकर बनाया गया है वो भी उल्टे तरीके से । आपको जानकार हैरानी होगी ,यहां पहले मंदिर का शिखर बनाया गया, इसके बाद नींव का निर्माण हुआ।
देखें विडियो : https://www.youtube.com/watch?v=O-qf1EzBnog
मंदिर का निर्माण लेटराइट पत्थर पर हुआ है। मंदिर 54 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा और 9 मीटर की गहराई में स्थित है। मंदिर के द्वार पर मंडप, शिखर और गर्भगृह निर्मित है, जिसे पिरामिड का आकर दिया गया है। वहीं, मुख्य मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ शिवलिंग विराजित हैं। पिरामिड आकार के बने इस मंदिर की दीवारों पर भगवान गणेश, लक्ष्मी, पार्वती, कालका, गरुड़ महाराज की विराजित हैं।
मंदिर के बारे में कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इतिहासकार मंदिर के निर्माण को 8वीं शताब्दी का मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर सप्तायन शैली में बना हुआ है। सामान्य तौर पर किसी भी बिल्डिंग का निर्माण किया जाता है, तो उसकी नींव पहले बनाई जाती है। लेकिन धर्मराजेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर हुआ है, जो आधुनिक इंजीनियरिंग को चुनौती देता है।
बौद्ध इतिहास को दर्शाते इस स्थान के मुख्य मंदिर में भगवान विष्णु और शिवलिंग स्थापित हैं। इसी के आसपास के सात मंदिरों में भी हिन्दू देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित हैं। इसी लिहाज से स्थानीय लोगों की इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है। भक्तों का मानना है कि मंदिर की आधारशिला पांडवों ने रखी थी। कहते है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान भीम ने इस मंदिर का निर्माण किया था। यहां की गुफाओ में भीम गुफा का नाम इसी लिहाज से पड़ा था। युधिस्ठिर को धर्मराज कहा जाता था और उन्ही के नाम पे ये मंदिर पड़ा ।
मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि जमीन से करीब 30 फीट नीचे बने इस मंदिर में सूर्य उदय की पहली किरण सीधे मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करती है। मान्यता है कि सूर्यदेव सबसे पहले भगवान शिव और विष्णु के दर्शन करते हैं।
धर्म राजेश्वर मंदिर के ठीक नीचे पहाड़ी के निचले छोर पर करीब 170 छोटी-बड़ी गुफाएं हैं। बताया जाता है कि कर्नल टॉड ने इन्हें सबसे पहले देखा था। करीब 60 से अधिक गुफाएं अब भी बहुत अच्छी स्थिति में हैं। इन गुफाओं में सैकड़ों बौद्ध स्तूप के साथ अलग-अलग मुद्राओं में बौद्ध प्रतिमाएं हैं। सैकड़ों छोटी बड़ी बौद्ध प्रतिमाओं में जीवनकाल और दिनचर्या से जुड़ी मुद्राओं का बखूबी चित्रण किया गया है। 1415 मीटर में बना यह विशालकाय मंदिर में सात छोटे मंदिर और एक बड़ा मंदिर है। 9 मीटर गहरा खोदकर 200 छोटी-बड़ी गुफाएं इस मंदिर में बनाई गई है। इस मंदिर की गुफाएं अजंता एलोरा गुफाओं से मिलती है। अजंता एलोरा की गुफाओं में कैलाश मंदिर की तुलना धर्मराजेश्वर मंदिर से की जा सकती है।
महाशिवरात्रि पर यहां तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है। मान्यता है कि यहां एक रात ठहरने से एक भोह तर जाता है। यानि मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए कई यात्री यहां रात रुकते हैं और कीर्तन भजन करते हैं। कुछ इतिहासकार यहां बौद्ध मठ होने की पुष्टि करते हैं जिसके प्रमाण भी मंदिर प्रांगण में हुए निर्माण को देखकर प्रतीत होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां बौद्ध मठ का एक बड़ा केंद्र बौद्ध प्रचारक रहा होगा।
इसे पांडवो ने बनाया हो या फिर बौध धर्म के प्रचारकों ने, ये मंदिर भारतीय रॉक कट वास्तुकला का यह शानदार उदाहरण किसी आश्चर्य से कम नहीं है।