सोशल संवाद/डेस्क : भारत में एक ऐसी ट्रेन भी चलती है, जिसमें न ही कोई टिकट लगती है और न ही इसमें कोई टीटीई रहता है, अगर आप इस ट्रेन के बारे नहीं जानते हैं . इस अनोखे ट्रेन के बारे पूरी जानकारी बताते हैं. रेलवे की गिनती दुनिया के चौथे सबसे बड़े नेटवर्क के तौर पर होती है. भारतीय रेल में रोजाना करीब 2 करोड़ 30 लाख लोग रोजाना सफर करते है. आपने भी ट्रेन में सफर जरूर किया होगा.
कई बार तो लोग बिना टिकट ही इसमें चढ़ जाते हैं और जुर्माने के डर से टीटीई से छिपते दिखाई देते हैं. लेकिन भारत में एक ऐसा भी ट्रेन जहा न ही कोई टिकट लगती है और न ही इसमें कोई टीटीई रहता है. सुनकर चौंक गए ना, लेकिन यह एकदम सही है. आजादी के बाद से यहां ट्रेन से लोग मुफ्त में सफर करते हैं. सबसे पहले बात करते हैं इस ट्रेन की,जिसका नाम है भाखड़ा-नांगल ट्रेन. जिसमें सफर के लिए कोई किराया नहीं लिया जाता है. इसका संचालन साल 1949 से किया जा रहा है, जिसका लाभ आस-पास के गांव के लोग उठा रहे हैं.
बता दें कि इस ट्रेन को पंजाब के नांगल से भाखड़ा तक चलाया जाता है. जिसका संचालन का जिम्मा भाखड़ा ब्यास बोर्ड के पास है. यह ट्रेन सतलज नदी और शिवालिक पहाड़ियों से होते हुए करीब 13 किलोमीटर चलती है,जिसको देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं. आमतौर पर देखने को मिलता है कि बिना टिकट यात्रा करने पर लोग टीटीई से बचते दिखाई देते हैं. लेकिन इसमें कोई टीटीई नहीं रहता है. इस ट्रेन की खास बात यह है कि इस ट्रेन के डिब्बे लकड़ी के बने हुए हैं. पहले इसको स्टीम इंजन से चलाया जाता था, लेकिन अब इसे डीजल इंजन से चलाया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक यह ट्रेन दिन में दो बार अप-डाउन करती है.
भाखड़ा और नांगल के बीच की दूरी तय करने में करीब 1 घंटे का समय लगता है. यह ट्रेन डीजल से चलती है और हर दिन 50 लीटर तेल खर्च होता है.भारत की इस खास ट्रेन में पहले 10 कोच होते थे, लेकिन इसमें अब सिर्फ तीन बोगियां होती हैं. इसमें एक कोच पर्यटकों के लिए और एक कोच महिलाओं के लिए रिजर्व होता है.
इस ट्रेन में लोगों को मुफ्त में यात्रा कराने का एक मकसद है। ट्रेन से मुफ्त में यात्रा इसलिए कराई जाती है कि लोग भाखड़ा नागल बांध को देख सकें. आज की पीढ़ी के लोग इस डैम को देखकर यह समझ सकें कि इसको बनाने के लिए कितनी परेशानियां आई होंगी। इस ट्रेन का संचालन भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड की तरफ से किया जाता है। ट्रेन को चलाने के लिए पहाड़ों को काटकर ट्रैक बिछाया गया था.
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