सोशल संवाद / डेस्क ( सिद्धार्थ प्रकाश ) : तुलसी गबार्ड, काश पटेल और जॉन रैटक्लिफ ने सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी के सामने गवाही दी, जिसमें लीक हुई युद्ध योजनाओं, सुरक्षा चूक और चीन से खतरे पर चर्चा की गई, साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा और खुफिया प्रोटोकॉल की विफलताओं को उजागर किया गया।
दुनिया को प्रभावित करने वाली चुनौतियों पर हर साल आयोजित होने वाली सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी की बैठक इस बार एक गंभीर आलोचना में बदल गई, जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा गोपनीय सूचनाओं के कुप्रबंधन की चौंकाने वाली खामियाँ उजागर हुईं। यह मंच जहां भू-राजनीतिक जोखिमों का आकलन किया जाना था, वहीं यह अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों की कमियों का आईना बन गया, जिसने देश की वैश्विक स्थिति को लेकर गंभीर चिंताएँ खड़ी कर दीं।
गोपनीय जानकारी का कुप्रबंधन: संकट गहराता हुआ – दोष किसका?
अगर गोपनीय दस्तावेज अख़बारों में छपने लगें, तो यह सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी नहीं तो और क्या है?” – बैठक की शुरुआत गोपनीय जानकारी की सुरक्षा में हुई चूकों पर केंद्रित रही। हाल ही में हुई लीक घटनाओं ने राष्ट्रीय सुरक्षा को भारी नुकसान पहुँचाया है। इस संदर्भ में अधिकारियों से सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता और जवाबदेही पर तीखे सवाल पूछे गए। गवाही में समन्वय और निगरानी की गंभीर कमी उजागर हुई, जिससे अज्ञात लोगों को अत्यधिक संवेदनशील जानकारियों तक पहुँचने का मौका मिला।
चीन की सैन्य और आर्थिक रणनीति: बढ़ता खतरा – राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं के बीच चर्चा चीन की एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती गतिविधियों की ओर मुड़ गई। खुफिया अधिकारियों ने चीन की सैन्य शक्ति में हो रही तीव्र वृद्धि, आक्रामक साइबर हमलों और आर्थिक विस्तारवादी नीतियों पर प्रकाश डाला। ताइवान को लेकर चीन की आक्रामक नीति और अमेरिका के लिए इससे उत्पन्न खतरों पर विशेष चिंता व्यक्त की गई।
रूस-यूक्रेन संघर्ष और लीक की मार – रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी गंभीर चर्चा हुई। इस दौरान यूक्रेन में अमेरिकी भूमिका से जुड़े युद्ध योजनाओं के लीक होने की घटनाओं ने खुफिया तंत्र की खामियों को उजागर किया। अधिकारियों से इस बारे में कठोर सवाल किए गए कि क्या उनकी लापरवाही से रूस को लाभ मिल रहा है?
कनाडा और मेक्सिको से नशीली दवाओं की तस्करी: बढ़ती समस्या – भू-राजनीतिक मुद्दों के अलावा, बैठक में अमेरिका में ड्रग तस्करी की बढ़ती समस्या पर भी चर्चा हुई। कनाडा और मेक्सिको से अवैध नशीले पदार्थों की तस्करी पर खुफिया एजेंसियों के समन्वय की कमी को गंभीर नाकामी बताया गया। सीनेटरों ने एजेंसियों से जवाब मांगा कि वे इस संकट को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठा रहे हैं।
साइबर युद्ध और लीक हुई युद्ध योजनाएँ – साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने हाल के लीक से उत्पन्न खतरों को लेकर अपनी गवाही दी। उन्होंने बताया कि अमेरिका के साइबर सुरक्षा बलों में गंभीर कमियाँ हैं और गोपनीय सूचनाओं की सुरक्षा को लेकर तत्काल सुधार की आवश्यकता है। गुप्त युद्ध योजनाओं के सार्वजनिक होने से जुड़े खतरों पर भी गहन चर्चा हुई।
जवाबदेही और नेतृत्व की विफलता – बैठक के अंतिम चरण में वरिष्ठ अधिकारियों की जवाबदेही पर तीखी बहस हुई। तुलसी गैबार्ड, कश पटेल और जॉन रैटक्लिफ़ की गवाही में खुफिया एजेंसियों की व्यवस्थागत खामियों पर प्रकाश डाला गया। सीनेटरों ने तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने और सुरक्षा को मजबूत करने की माँग की।
निष्कर्ष: अमेरिका की सुरक्षा को खतरा – इस सुनवाई से चौंकाने वाले खुलासे हुए, जो अमेरिकी खुफिया तंत्र की कमजोरियों को उजागर करते हैं। जब संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती, तो राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट आना तय है। सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी अब जबरदस्त दबाव में है कि वह कड़े सुधार लागू करे ताकि आगे और कोई बड़ी चूक न हो। दुनिया देख रही है, और दाँव पर बहुत कुछ लगा हुआ है। भारत के लिए सबक और संभावित प्रभाव
अमेरिकी सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी की इस विफलता से भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों और खुफिया तंत्र को और मजबूत करने की सीख लेनी चाहिए। गोपनीय जानकारियों की लीक और सुरक्षा चूकों से न केवल अमेरिका की वैश्विक साख पर सवाल उठे हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट हुआ कि बड़े और विकसित देशों में भी ऐसी कमजोरियाँ हो सकती हैं। भारत, जो लगातार चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से साइबर हमलों और सैन्य खतरों का सामना कर रहा है, उसे अपने खुफिया तंत्र को अधिक सुदृढ़ और सुरक्षित बनाना होगा। खासकर, डिजिटल सुरक्षा, साइबर युद्ध और रक्षा योजनाओं की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए कड़े नियम और जवाबदेही की व्यवस्था करनी होगी। अमेरिका में ड्रग तस्करी और सुरक्षा चूकों का असर भारत पर भी पड़ सकता है, क्योंकि भारत भी अंतरराष्ट्रीय अपराध नेटवर्क और खुफिया लीक के खतरों से अछूता नहीं है। इस घटना से सीख लेते हुए भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को मजबूत करना चाहिए, जिससे ऐसी विफलताओं से बचा जा सके और देश की संप्रभुता व रणनीतिक स्थिति को और अधिक सुरक्षित रखा जा सके।
