सोशल संवाद/डेस्क : नारायण आईटीआई लुपुंगडीह, चांडिल में आज धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती श्रद्धा, उत्साह और गरिमा के साथ मनाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत संस्थान के संस्थापक एवं भाजपा प्रदेश कार्य समिति के सदस्य डॉ. जटा शंकर पांडेय द्वारा दीप प्रज्वलन और बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर की गई।
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अपने संबोधन में डॉ. पांडेय ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा केवल एक क्रांतिकारी नेता नहीं थे, बल्कि सामाजिक जागरण, सांस्कृतिक चेतना और आत्मसम्मान के प्रतीक थे। उन्होंने बताया कि कम उम्र में ही बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज को संगठित कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ऐतिहासिक उलगुलान आंदोलन की शुरुआत की, जिसने जनजातीय इतिहास की दिशा बदल दी।
डॉ. पांडेय ने कहा कि बिरसा का जीवन हर युवा के लिए प्रेरणा है
वे न्याय, अधिकार, स्वाभिमान और संघर्ष की मिसाल रहे।
उनकी विचारधारा आज भी जल–जंगल–जमीन की सुरक्षा और आदिवासी पहचान को मजबूत करती है।
उन्होंने बिरसा मुंडा की प्रमुख उपलब्धियों और योगदानों का उल्लेख करते हुए कहा
- अंग्रेजी शासन के विरुद्ध सबसे बड़ा जनजातीय विद्रोह उलगुलान
- मुंडा समुदाय में सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक सुधारों के अग्रदूत
- आदिवासी समाज में शिक्षा, एकता और जागरूकता का प्रसार
- जल–जंगल–जमीन के अधिकारों के संघर्ष के प्रतीक
- जनजातीय संस्कृति, भाषा और पहचान की रक्षा के वाहक
उन्होंने कहा कि इसी योगदान के कारण आज 15 नवंबर पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कार्यक्रम में छात्रों ने बिरसा मुंडा के बचपन, उनके सामाजिक-धार्मिक अभियानों, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उनके संघर्ष और उनके नेतृत्व की विशेषताओं पर आधारित विचार व प्रस्तुतियाँ दीं।
वक्ताओं ने कहा कि बिरसा मुंडा का जीवन दर्शन आज के समाज में भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना आज़ादी से पहले था।
इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख अतिथियों में
एडवोकेट निखिल कुमार, शांति राम महतो, जयदीप पांडे, प्रकाश महतो, देवाशीष मंडल, शुभम साहू, पवन महतो, अजय मंडल, गौरव कुमार महतो, कृष्ण पद महतो सहित कई स्थानीय गणमान्य व्यक्ति, शिक्षक और बड़ी संख्या में छात्र–छात्राएँ शामिल रहे।
कार्यक्रम का समापन बिरसा मुंडा के विचारों पर चलते हुए समाजसेवा, शिक्षा, संस्कृति संरक्षण और जनकल्याण के संकल्प के साथ किया गया।








