सोशल संवाद/डेस्क : सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। एक महीने में 2 बार प्रदोष व्रत किया जाता है। मन जाता है की यह व्रत करने से हर मनोकामना पूरी होती है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव की कृपा से सुख-समृद्धि और जीवन में सफलता मिलती है।
इस दिन सुबह से शाम तक व्रत रखा जाता है और भगवान शिव समेत उनके पूरे परिवार की आराधना की जाती है। आइए जानते हैं उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज से जून महीने में पहला प्रदोष व्रत कब है?
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वैदिक पंचांग के अनुसार, 8 जून को सुबह 07:17 बजे ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शुरू होगी. 09 जून को सुबह 09:35 बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त होगी. सनातन धर्म में उदयातिथि मान्य है, इसलिए 8 जून को ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत रखा जाएगा. रविवार पड़ने के कारण इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा. इस दिन भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 07:18 से 09:19 तक
शिव पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन उपवास रखने से साधक रोग और दोषों से मुक्ति पाता है और धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है. ऐसा करने से करियर में भी लाभ मिलता है. रवि प्रदोष का संयोग कई तरह के दोषों को दूर करता है और तरक्की मिलती है।
प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करके भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें. इसके बाद शिव परिवार का पूजन करें और भगवान शिव पर बेल पत्र, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें. फिर प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें. पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करें और शिव चालीसा का पाठ जरूर करें. इसके बाद ही अपना उपवास खोलें.