सोशल संवाद/डेस्क : कहते हैं अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी मंजिल असंभव नहीं होती। इस बात को सच कर दिखाया है जम्मू-कश्मीर की बेटी शीतल देवी ने। बिना हाथों के पैदा हुई इस युवा तीरंदाज ने न केवल अपनी शारीरिक सीमाओं को चुनौती दी, बल्कि दुनिया को यह दिखा दिया कि असली ताकत शरीर में नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और मेहनत में होती है।

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शीतल ने हाल ही में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने जेद्दा में होने वाले एशिया कप तीरंदाजी टूर्नामेंट के तीसरे चरण के लिए भारत की सक्षम जूनियर टीम में जगह बनाई है। यह उपलब्धि इसलिए खास है क्योंकि यह किसी सामान्य खिलाड़ी की कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसी लड़की की यात्रा है जिसने पेड़ पर चढ़ते-चढ़ते अंतरराष्ट्रीय मंच तक का सफर तय किया।
बचपन की कठिनाइयों के बीच जन्मी उम्मीद
जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्र की रहने वाली शीतल बचपन से ही दोनों हाथों के बिना पैदा हुईं। लेकिन उनकी जिद और जुझारूपन ने कभी उन्हें कमजोर नहीं होने दिया। बचपन में वे अपने पैरों से रोजमर्रा के काम करती थीं — लिखना, खाना, खेलना, यहां तक कि पेड़ पर चढ़ना भी। गांव में बच्चे अक्सर उनके साथ खेलते थे और वे हर काम पैर से इतनी सहजता से करती थीं कि लोग देखकर हैरान रह जाते थे।
उनके परिवार ने भी कभी उन्हें ‘कमजोर’ नहीं माना। बचपन में जब दूसरे बच्चे लकड़ी के खिलौनों से खेलते थे, तब शीतल लकड़ी का धनुष और तीर बनाकर खुद को तीरंदाज की तरह महसूस करती थीं। उनके लिए यह खेल नहीं, बल्कि एक जुनून था जो धीरे-धीरे उनके जीवन का मकसद बन गया।
प्रेरणा और संघर्ष का सफर
शीतल की जिंदगी में एक मोड़ तब आया जब उन्होंने तुर्किये की प्रसिद्ध पैरालंपिक चैंपियन ओजनूर क्यूर गिर्डी की कहानी सुनी। गिर्डी न केवल पैरालंपिक में भाग लेती हैं, बल्कि सक्षम खिलाड़ियों के मुकाबले में भी प्रतिस्पर्धा करती हैं। इसी से प्रेरित होकर शीतल ने तीरंदाजी को अपने करियर के रूप में अपनाने का फैसला किया।
शुरुआत आसान नहीं थी। तीरंदाजी का धनुष सामान्य तौर पर भारी होता है और उसे नियंत्रित करने के लिए हाथों की ताकत जरूरी होती है। लेकिन शीतल ने अपने पैरों से धनुष संभालने का तरीका सीखा। शुरुआत में कोचों को संदेह था कि यह संभव होगा या नहीं, लेकिन जब उन्होंने देखा कि शीतल अपने पैरों से पेड़ पर चढ़ जाती हैं, तो उन्हें यकीन हो गया कि यह लड़की किसी भी चुनौती को पार कर सकती है।
पदकों से सजी उपलब्धियों की लिस्ट
आज शीतल देवी का नाम विश्व तीरंदाजी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। उन्होंने पेरिस पैरालंपिक 2024 में मिश्रित टीम कंपाउंड स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया। इससे पहले, हांगझोऊ पैरा एशियाई खेलों में उन्होंने दो स्वर्ण और एक रजत पदक अपने नाम किए थे।
उनके प्रदर्शन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी का ध्यान खींचा। वर्ष 2023 में उन्हें एशिया की सर्वश्रेष्ठ युवा एथलीट का खिताब भी मिला। यह सम्मान इस बात का प्रमाण है कि शारीरिक सीमाएं व्यक्ति की क्षमता को नहीं रोक सकतीं, अगर मन में दृढ़ निश्चय और मेहनत की ललक हो।
जीवन की प्रेरणादायक झलक
शीतल का आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच उनकी सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने कभी अपनी स्थिति को कमजोरी नहीं माना। वे कहती हैं, “लोग कहते थे कि मैं कुछ नहीं कर सकती, लेकिन मैंने ठान लिया था कि मैं अपने पैरों से दुनिया को जवाब दूंगी।”
उनकी यह सोच उनके हर काम में दिखती है। एक बार उनका वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे अपने पैर से पानी की बोतल को हवा में उछालकर सीधा खड़ा कर देती हैं, जबकि उनके दोस्त हाथ से भी ऐसा नहीं कर पाते थे। यह नज़ारा केवल मनोरंजक नहीं था, बल्कि यह बताता था कि शीतल के भीतर कितनी अद्भुत नियंत्रण शक्ति और संतुलन है।
कोच की भूमिका और भविष्य की उम्मीदें
शीतल की सफलता के पीछे उनके कोच और परिवार का बड़ा योगदान है। जब उनके कोच ने पहली बार देखा कि वह पैर से धनुष खींच सकती हैं, तो उन्होंने उन्हें विशेष प्रशिक्षण देना शुरू किया। धीरे-धीरे शीतल की निशानेबाजी इतनी सटीक हो गई कि वे आज भारत की सबसे भरोसेमंद पैरालंपिक तीरंदाज बन चुकी हैं।
अब जब उन्हें एशिया कप की भारतीय जूनियर टीम में शामिल किया गया है, तो यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का पल है। उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे आने वाले अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भारत को और भी अधिक पदक दिलाएंगी।
शीतल देवी की कहानी केवल एक खिलाड़ी की सफलता की दास्तां नहीं है, बल्कि यह उस उम्मीद की कहानी है जो असंभव को संभव बनाती है। बिना हाथों के पैदा होने के बावजूद उन्होंने अपने पैरों से देश का नाम ऊंचा किया।आज शीतल न केवल युवाओं के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा हैं जो जीवन की कठिनाइयों से जूझ रहा है। उन्होंने साबित किया है कि सच्ची जीत शरीर की नहीं, बल्कि मन की होती है।








