सोशल संवाद / डेस्क :( सिद्धार्थ प्रकाश) भारत के सरकारी बैंक अब सिर्फ कर्ज नहीं, बल्कि गरीबों और मध्यम वर्ग की जेब से जबरन पैसा निकालने में भी माहिर हो गए हैं। पिछले 5 सालों (2019-2024) में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने “मिनिमम बैलेंस” न रखने के नाम पर जनता से करीब 8,500 करोड़ रुपये लूट लिए! यह वही पैसा है, जो उन ग्राहकों से काटा गया जो पहले से ही आर्थिक तंगी में थे और अपने खातों में निर्धारित राशि नहीं रख सके।
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PNB ने अकेले 1,538 करोड़ रुपये वसूले, जबकि बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक और अन्य सरकारी बैंकों ने भी जमकर जनता को चूना लगाया। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये वही बैंक हैं, जो अरबों रुपये के डूबे कर्ज (NPA) के नाम पर बड़े उद्योगपतियों का पैसा माफ कर देते हैं, लेकिन आम आदमी से सौ-सौ रुपये छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ते!
SBI ने 2020 में यह चार्ज बंद कर दिया, तो बाकी बैंक क्यों नहीं? क्या गरीबों और छोटे खाताधारकों को केवल “आसान शिकार” समझ लिया गया है? सरकार और बैंकों को यह बताना चाहिए कि जब वे जन-धन योजना जैसी योजनाओं के जरिए हर गरीब को बैंकिंग से जोड़ने की बात करते हैं, तो उन्हीं गरीबों की गाढ़ी कमाई काटने का क्या तुक है?
बैंकों की यह नीति सीधे तौर पर आम जनता की लूट है, और सरकार को इसमें तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। वरना जनता को भी सोचना होगा कि जिन बैंकों में उनका पैसा रखा है, वही बैंक उन्हें लूटने पर उतारू हैं!