सोशल संवाद / जमशेदपुर : रविवार 28 सितंबर को जमशेदपुर महानगर के कई नगरों व बस्तियों में संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में विजयादशमी उत्सव मनाया गया व घोष सह पथ संचलन निकाला गया।
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बिरसानगर जोन 1बी से बिरसानगर में, संघ कार्यालय से बारीडीह में, जी टाउन मैदान से बिष्टुपुर में, शिवाजी क्लब गांधीनगर से बागबेड़ा में, शंकासाईं से मानगो में, प्रमथनगर से परसूडीह में व खूंटाडीह से सोनारी में पथ संचलन निकाला गया, जिनमें सभी बस्ती के हजारों बाल व तरुण स्वयंसेवकों की अग्रणी भूमिका रही।
समाज ने भी बढ़ चढ़कर अपनी सहभागिता दिखाई और इसी क्रम में पथ संचलन करते स्वयंसेवकों का कई स्थानों पर भारत माता की जय के उद्घोष व मातृ शक्ति के द्वारा पुष्पवर्षा के साथ अभिनंदन किया गया। संचलन के पश्चात नगरों में भिन्न भिन्न स्थानों पर शस्त्र पूजन सह विजयादशमी उत्सव मनाया गया।

विभिन्न कार्यक्रमों के बौद्धिककर्ताओं में प्रमुख रूप से प्रांत प्रचारक गोपाल जी, विभाग प्रचार प्रमुख आलोक पाठक, सह मृत्युंजय कुमार, क्रीड़ा भारती राजीव कुमार व सेवा भारती के गुरुशरण जी आदि ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन 1925 में श्री विजयादशमी के दिन डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी ने नागपुर में की थी। तब से अबतक संघ अपने सतत कार्य करते हुए समाज जागरण में लगा हुआ है। इस विजयादशमी पर संघ का 100 वर्ष पूर्ण होने वाला है।
बताया कि हिंदू समाज को सक्रिय, जागरूक और शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए अपने देश के मनीषियों ने समाज जीवन में विशेष प्रसंग पर अनेकों एक उत्सव का सृजन किया। विजयदशमी शक्ति उपासना का उत्सव है। विजयादशमी आसुरी शक्ति के ऊपर सात्विक और दैवीय शक्ति की विजय का प्रतीक है।

सैकड़ों वर्षों के आक्रमणों के कारण पतित, पराभूत, आत्माशून्य, आत्मविस्मृति हिंदू समाज में नव चैतन्य आत्मविश्वास एवं विजय की आकांक्षा के निर्माण के लिए डॉक्टर साहब ने 10 से 12 नवयुवकों को लेकर अपने घर पर 1925 में विजयादशमी के दिन ही हिंदू समाज का संगठन का कार्य प्रारंभ करने की घोषणा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक की स्थापना की।
डॉक्टर साहब जन्मजात देशभक्त थे। वह अपने डॉक्टर के पढ़ाई के दौरान कोलकाता में अनुशीलन समिति में कार्य किये और अपने डॉक्टर की पढ़ाई पूर्ण करके नागपुर में कांग्रेस में रहकर भी देखें और 1921 में 1 वर्ष का कारावास भी उन्हें हुआ। उन्होंने बताया कि संघ यात्रा का 100 वर्ष उपेक्षा, विरोध, सहयोग एवं सहभाग रहा। संघ अपने शताब्दी वर्ष में स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज में पांच परिवर्तन का आह्वान कर रही है।

सामाजिक समरसता के माध्यम से सभी हिंदू भारत मां के पुत्र हैं व सभी हिंदू सहोदर हैं। पूर्व काल में और वर्तमान में भी भारत की अर्थव्यवस्था का आधार हिंदू समाज के कुटुंब व्यवस्था एवं परिवार व्यवस्था है। परिवार किसी भी समाज का नींव होता है। एक सशक्त और जागरूक परिवार समाज का निर्माण की दिशा में पहला कदम है। कुटुंब प्रबोधन का मतलब है कि परिवार के सदस्य शिक्षा, नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारियां के प्रति जागरूक हो।
पर्यावरण संरक्षण आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने से जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा और प्रदूषण जैसे समस्याओं उत्पन्न हो रही है जो सीधे तौर देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर प्रभाव डालती है।
स्वदेशी यानी स्वभाषा का आग्रह, वेशभूषा में भारतीयता के दर्शन और विदेशी वस्तुओं का न्यूनतम प्रयोग। नागरिक कर्तव्य के माध्यम से नियमों का पालन। उन्होंने कहा कि आज समाज जीवन में हम सभी स्वयंसेवक समाज के प्रति निरंतर कार्य करने में लगे हुए हैं। हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि भारत का पुत्रवत्र हिंदू समाज सामर्थ्यशाली था, इसलिए वैभव संपन्न था।
संघ का अंतिम लक्ष्य पुत्रवत हिंदू समाज को जागृत, संस्कारित होकर शक्ति संपन्न, सामर्थवान बनाना है। संघ हिंदू समाज में कोई संगठन नहीं है, वरन् संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन है।








