सोशल संवाद/डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के रिवीजन मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई जारी है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि वोटर लिस्ट रिवीजन नियमों को दरकिनार कर किया जा रहा है। वोटर की नागरिकता जांची जा रही है। ये कानून के खिलाफ है।
यह भी पढ़े : केजरीवाल को नोबल मिलता अगर अकर्मण्यता, अराजकता और भ्रष्टाचार की श्रेणी होती – वीरेन्द्र सचदेवा
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) यानी वोटर लिस्ट रिवीजन में नागरिकता के मुद्दे में क्यों पड़ रहे हैं?अगर आप वोटर लिस्ट में किसी शख्स का नाम सिर्फ देश की नागरिकता साबित होने के आधार पर शामिल करेंगे तो फिर ये बड़ी कसौटी होगी। यह गृह मंत्रालय का काम है। आप उसमे मत जाइए।
SIR के खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी दलील दे रहे हैं। चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता के वकील: अब जबकि चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं, चुनाव आयोग कह रहा है कि वह पूरी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) 30 दिनों में करेगा।
सुप्रीम कोर्ट: SIR प्रक्रिया में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह आगामी चुनाव से कई महीने पहले ही कर ली जानी चाहिए थी। भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच करना आवश्यक है, जो संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत आता है। चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह संविधान के तहत अनिवार्य है और इस तरह की पिछली प्रक्रिया 2003 में की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट: SIR के दौरान दस्तावेजों की सूची से आधार कार्ड को बाहर रखा जा रहा है।
चुनाव आयोग: वोटर रिवीजन के दौरान सिर्फ आधार ही नहीं मांगा जा रहा, अन्य दस्तावेज भी मांग रहे हैं।