सोशल संवाद / डेस्क : किसी फिल्म में कॉमेडी न हो तो बड़ा फीका-फीका सा लगने लगता है. आज के समय में बहुत सारे कॉमेडियन एक्टर – एक्ट्रेस है पर पुराने समय में लड़कियों को ये सब करने की अनुमति बहुत कम दी जाती थी. तब उस समय हिंदी सिनेमा की पहली फीमेल कॉमेडियन बनी टुनटुन जिनका असली नाम उमा देवी खत्री था. अगर आपको नहीं पता उनके बारे में तो चलिए हम आपको बताते है कुछ उनके बारे कुछ दिलचस्प बाते.
वे 13 साल की उम्र में मुंबई आई और फिल्म इंडस्ट्री पर छा गई. फिल्मों के द्वारा उन्होंने लोगों को हंसाया. बाबुल (1950), मिस्टर एंड मिसेज ’55 (1955), पति, पत्नी और वो (1978) जैसी कई प्रसिद्ध फिल्मों में उन्होंने अपनी कॉमेडी टाइमिंग से दर्शकों के दिल में जगह बना ली थी. हालांकि आज वह हमारे संग नहीं है, लेकिन उनका मजाकिया किरदार हमेशा सराहा जाता है.
उनका जीवन आसान नहीं था
फिल्मों में जितनी खुशमिजाज टुनटुन दिखाई देती थी, उनका जीवन उतना ही त्रासदी से भरा था. साल 1923 में उत्तर प्रदेश के अमरोहा के पास एक छोटे से गांव में उनका जन्म हुआ था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उमा देवी के परिवार की जमीन विवाद के चलते हत्या कर दी गई थी और वह बहुत कम उम्र में ही अनाथ हो गई थीं. उनके माता-पिता और भाई के चेहरे उनके जेहन में बस धुंधली सी याद बनकर रह गए थे. जब प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक शिशिर कृष्ण शर्मा ने उनकी मृत्यु से कुछ दिन पहले उनका इंटरव्यू लिया, तो उमा ने बताया कि उन्हें याद नहीं कि उनके माता-पिता कैसे दिखते थे और एक दिन उनके भाई की भी हत्या कर दी गई. बता दें, परिवार के निधन के बाद वह गरीबी और अकेलेपन से जूझ रही थी.
अपने परिवार को खोने के बाद, उमा को उनके रिश्तेदारों ने अपने पास रख लिया, जो उनके साथ नौकरानी की तरह पेश आते थे. खुद की जिंदगी से परेशन हो चुकी, उमा देवी के जीवन में संगीत ही एकमात्र सहारा थी. वह गाने सुनती और गाती थीं और एक लोकप्रिय गायिका बनने का सपना देखती थी.
कैसे बनी सिंगर
टुनटुन को बतौर सिंगर पहला ब्रेक मशहूर संगीतकार नौशाद ने दिया था. टुनटुन ने नौशाद साहब से जाकर कहा कि मैं गाती अच्छा हूं आप मुझे काम दीजिये नहीं तो मैं समंदर में कूद कर खुद की जान ले लुंगी. तब टुनटुन का ऑडिशन लिया गया. उसमें वो सेलेक्ट हो गईं. टुनटुन ने पहला गाना 1946 में फिल्म ‘वामिक अजरा’ में गाया. यहीं से टुनटुन की उमा देवी के रूप में एक सिंगर के तौर पर शुरुआत हुई.
क्यों उन्होंने ब्रेक ले लिया था
टुनटुन के गाने से लाहौर में बैठे अख्तर अब्बास काजी इतने प्रभावित हुए कि वो मुबंई आ गए. मुंबई पहुंच कर उन्होंने सीधे टुनटुन को शादी के लिए पूछ लिया और 1947 में शादी कर ली. इसके बाद परिवार को समय देने के लिए टुनटुन ने इंडस्ट्री से दूरी बना ली.
कैसे सिंगर से बनी एक्ट्रेस
बच्चे हो जाने के बाद टुनटुन काफी मोटी हो गई थीं. वो फिर से इंडस्ट्री में वापसी करना चाहती थीं. इसके लिए वो फिर नौशाद के पास पहुंचीं. लेकिन नौशाद ने उनसे कहा कि अब लता मंगेशकर जैसे संगीत की शिक्षा लिए हुए लोग म्यूजिक में आ गए हैं. इसलिए अब थोडा मुस्किलहोगा टिक पाना. उन्होंने टुनटुन को फिल्मों में एक्टिंग करने की सलाह दी थी. दिलीप कुमार उस वक्त ‘बाबुल’ फिल्म बना रहे थे. नौशाद ने उन्हें टुनटुन को लेने के लिए कहा, दिलीप साहब इस पर राजी हो गए। इस तरह टुनटुन ने 1950 में आई फिल्म ‘बाबुल’ से अपना एक्टिंग डेब्यू किया.
क्यों लोग उमा देवी खत्री को टुनटुन बोलते थे
वो बच्चे होने के बाद बहुत मोटी हो गई थी लोग उन्हे देख कर हँसते थे और प्यार से टुनटुन बोलने लगे थे. तब उमा देवी खत्री से वह टुनटुन बन गई, आपकी जानकारी के लिए बता दे की उनसे प्रेरित हो कर टुनटुन नाम का एक कार्टून करैक्टर भी बना , जिसका नाम है टुनटुन मोसी (छोटा भीम ).