सोशल संवाद / डेस्क : साल में 12 महीने होते हैं। हर महीना 30 दिनों का होता है। एक- एक महीने को दो पक्षों में बांटा गया है। इसे कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष कहते हैं। पूर्णिमा से अमावस्या तक बीच के 15 दिनों को कृष्णपक्ष जबकि अमावस्या से पूर्णिमा तक के 15 दिनों को शुक्लपक्ष कहा जाता है। चलिए जानते हैं इसकी शुरुआत कैसे हुई ।
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पौराणिक कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष की 27 बेटियां थीं, जो असल में 27 नक्षत्र थी । इन सभी का विवाह दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा से किया। पर चंद्रमा सभी में सबसे ज्यादा रोहिणी से प्रेम करते थे। बाकी सभी को नज़रंदाज़ किया करते थे । एक दिन चन्द्रमा की बेरुकी से क्रोधित होकर सभी ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चंद्रमा की शिकायत कर दी । इसके बाद राजा दक्ष ने चंद्रमा से कहा कि वह मेरी सभी पुत्रियों के साथ समान व्यवहार करें। इसके बाद भी चंद्रमा का रोहिणी के प्रति प्यार कम नहीं हुआ और बाकी पत्नियों की अवहेलना करते रहें।
जब दक्ष प्रजापति को ये पता चला उन्होंने गुस्से में आकर चंद्रमा को क्षय रोग का शाप दे दिया। इसके बाद चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे कम होते गया । तभी से कृष्ण पक्ष की शुरुआत हुई। कहते हैं कि क्षय रोग से चंद्र का अंत निकट आता गया। तब ब्रह्मा देव ने चंद्र से शिवजी की आराधना करने को कहा। शिवजी चन्द्र देव की आराधना से प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्र को अपनी जटा में धारण किया। ऐसा करने से चंद्र का तेज फिर से लौटने लगा। इससे शुक्ल पक्ष का निर्माण हुआ।
चंद्र दक्ष प्रजापति के श्राप से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकते थे। इसलिए चंद्र को बारी-बारी से कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है। और इसी कारण से इन दो पक्षों में और 15-15 दिन की अवधि में विभाजित कर दिया गया ।