सोशल संवाद / डेस्क / (सिद्धार्थ प्रकाश ) : ब्रेकिंग न्यूज़ भारत सरकार फिर 8 लाख करोड़ का नया लोन लेने जा रही है। जी हां! हर साल करोड़ों का कर्ज लिया जा रहा है और इसे ही तरक्की का नाम दिया जा रहा है। यह देखकर कुछ अर्थशास्त्री बड़ी मासूमियत से कहते हैं, “अरे! अमेरिका ने भी तो बहुत कर्ज लिया है!”
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पर इन्हें कौन समझाए कि अमेरिका कमाता भी है! वो उत्पादन करता है, नवाचार करता है, और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है। हमारे यहां हालात ये हैं कि हम लोन का ब्याज चुकाने के लिए भी नया लोन लेते जा रहे हैं। यानी कर्ज का पहिया ऐसा घूमा है कि इसे रोकना अब नामुमकिन लगता है।
बैंक खड़े हैं ताले डालकर, हमसे वसूली जारी है,
नेता ऐश कर रहे, और जनता बेचारी है!
करोड़ों के कर्ज़ की चिट्ठियाँ, मिनटों में पास होती हैं,
गरीब की झोपड़ी गिराने में, सरकार सबसे तेज़ होती है!
बताइए, ये सब A1 और A2 चुकाएंगे क्या? मोदी जी का 2040 का कर्ज मॉडल एकदम स्पष्ट है – देश खत्म! पहले लोन लो, फिर उसे चुकाने के लिए नया लोन लो, और इस अनंत चक्र में देश को दिवालिया बना दो। फिर वही टाई लगाए अर्थशास्त्री टीवी पर बैठकर ज्ञान देंगे, “कर्ज लेना बुरा नहीं है!”
जनता डूब रही है कर्ज में, लेकिन ये लोग बहस कर रहे हैं कि कर्ज चुकाने की जरूरत ही क्या है! जब कोई हिसाब-किताब ही नहीं, तो बस नया लोन लेते जाओ और देश को कर्ज के बोझ तले दबाते जाओ।
देश को आगे बढ़ाने की कोई ठोस योजना नहीं, बस खोखली बयानबाजी और झूठे वादे हैं! और जब दुनिया भारत की विफलता पर सवाल उठाएगी, तो यही लोग कहेंगे – “नीतियां गलत थीं!”
देश पर बढ़ता कर्ज़: एक विश्लेषण
भारत सरकार का कर्ज़ पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं। वित्त वर्ष 2018-19 में केंद्र सरकार पर 93.26 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ था, जो 2024-25 में बढ़कर 185.27 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। यह सात वर्षों में लगभग 98.65% की वृद्धि दर्शाता है。
वित्त मंत्रालय के अनुसार, सितंबर 2024 तक देश पर कुल विदेशी कर्ज़ 711.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, जबकि मार्च 2014 में यह 446.2 बिलियन डॉलर था। इसका अर्थ है कि पिछले दस वर्षों में विदेशी कर्ज़ में लगभग 265 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई है।
इसके अतिरिक्त, भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र पर भी विदेशी कर्ज़ का बोझ बढ़ा है। करीब 15 लाख डॉलर का विदेशी कर्ज़ हो सकता है, यानी ये सब भी लंबे समय में डिफॉल्ट मारने वाले हैं। हालांकि, सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि कंपनियों द्वारा विदेशी स्रोतों से उधारी लेने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिससे कुल विदेशी कर्ज़ में इजाफा हुआ है।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ते कर्ज़ के बावजूद, यदि उधार ली गई राशि का उपयोग उत्पादक क्षेत्रों में किया जाए, तो यह आर्थिक विकास को गति दे सकता है। हालांकि, कर्ज़ की बढ़ती मात्रा और उसे चुकाने की क्षमता को संतुलित रखना आवश्यक है, ताकि देश की आर्थिक स्थिरता बनी रहे।
आग लगी है घर में, और सरकार मशाल जलाए बैठी है, भीख मांगते हाथों को, अमृतकाल सुनाए बैठी है! इन सबके लिए वोटर खुद ज़िम्मेदार है, और पत्रकारों को लोग मुफ्त में ही गालियाँ देते हैं। अब पूरे देश में नौकरियाँ ऐसे ही खत्म की जाएँगी, जैसे मध्य प्रदेश में बेरोज़गारों को “अंकांक्षी युवा” कह दिया गया! नौकरी की ज़रूरत ही खत्म कर दी गई है, इसलिए भारत सरकार लगातार कर्ज़ लेती जा रही है। अब समझे?