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हाईकोर्ट से फिर पड़ी जेएनएसी को लताड़

सोशल संवाद/जमशेदपुर : झारखंड हाईकोर्ट में न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय और न्यायाधीश दीपक रौशन की पीठ में जमशेदपुर में अवैध भवन निर्माण को लेकर जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के खिलाफ की गई जनहित याचिका 2078 /2018 की सुनवाई हुई. सुनवाई शुरू होते ही न्यायालय की ओर से गठित टीम की रिपोर्ट के आधार पर जेएनएसी के अधिवक्ता से पूछा कि जमशेदपुर में कानून का शासन है अथवा नहीं? इतने बड़े पैमाने में भवन निर्माण में अनियमितता व अवैध निर्माण पर लीपापोती क्यों की जा रही है? न्यायाधीश ने भरी अदालत में जेएनएसी से पूछा कि अब तक कितने अवैध निर्माणों पर कार्रवाई की है और क्या कार्रवाई की है. इस पर जेएनएसी केअधिवक्ता ने कहा कि 62 भवनों पर नियमानुसार कार्रवाई की गई जिसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि एक भी भवन में न तो पार्किंग को बहाल किया गया है न ही नक्सा विचलन कर बने तल को हटाया गया है. इस न्यायाधीश ने अपने अंदाज में प्रतिवादी के अधिवक्ता से पूछा कि जिन भवनों में कार्रवाई की हैं उसकी कोई तस्वीर है तो दिखाएं. कोर्ट के सामने जेएनएसी के अधिवक्ता तस्वीर दिखाने में असफल हुए तब अदालत ने याचिकाकर्ता के पक्ष के अधिवक्ता से अपनी बात रखने को कहा. याचिकाकर्ता के तरफ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, रोहित सिंहा और एम आई हसन ने सुनवाई में हिस्सा लिया.

अक्षेस का अधिकार क्या है, कहां से मिलता

अदालत ने पूछा कि अक्षेस का अधिकार क्या है, इसे ये अधिकार मिलता कहां से है. इस पर एक अधिवक्ता ने न्यायालय का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि अक्षेस एक गैरकानूनी संस्था है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि अक्षेस का गठन अंग्रेजों ने बिहार-उड़ीसा म्युनिसिपल एक्ट, 1922 के तहत 1924 में किया पर यह 1998 तक एक प्राईवेट बॉडी रही क्योंकि यह पूरी तरह टाटा स्टील के नियंत्रण में रही बावजूद इसके कि 1990 में अक्षेस को बिहार-उड़ीसा म्युनिसिपल एक्ट से हटाकर इंडस्ट्रियल टाउन की परिभाषा को शामिल किया गया. उन्होंने आगे बताया कि 1998 में सरकार ने एक सर्कुलर के माध्यम से उपायुक्त को यह निर्देश दिया कि वे अपने मातहत किसी कनीय अधिकारी को नियुक्त कर अक्षेस को चलायें. यह एक असंवैधानिक और गैरकानूनी व्यवस्था थी. 2006 में सरकार ने फिर एक नोटिफिकेशन से अक्षेस के लिए एक स्पेशल अधिकारी का पद सृजित किया जो म्युनिसिपल कानून के खिलाफ था. उन्होंने आगे बताया कि इन 16-17 वर्षों में दो ही स्पेशल अधिकारी मुख्य रूप से रहे हैं एक दीपक सहाय और दूसरे कृष्ण कुमार और सबसे ज्यादा नक्शा पारित व भवन निर्माणों में विचलन इन्हीं दोनों अधिकारियों के समय का है.

2011 में 46 भवन नहीं 1257 होती संख्या

कोर्ट में बताया गया कि 2011 में उच्च न्यायालय के आदेश पर 46 भवन सील किए गये थे उस वक्त यदि कड़ाई से कानून का पालन होता तो आज अवैध भवनों की संख्या 1257 नहीं होती. उन्होंने आगे बताया कि उन्हीं 46 भवनों को अक्षेस फिर 2024 में सिलिंग दिखा रही है. न्यायाधीश रंगोन मुखोपाघ्याय ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से पूछा कि क्या यह बात सही है. इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अपने हलफनामे में  संलग्न सूचियों एक बार देखने का आग्रह किया जिन्हें सूचना अधिकार के तहत प्राप्त किया गया था और जिसे पहले से ही हलफनामें में लगा रखा था.

जेएनएसी के उप नगरायुक्त को सशरीर आने का आदेश

न्यायाधीश ने जब पूरी सूचियों को देखा तो दंग रह गए. उन्होंने जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के उप नगर आयुक्त अगली सुनवाई में सशरीर उपस्थित होने का आदेश देते हुए अघिसूचित क्षेत्र समिति को हिदायत दी कि अदालत को गुमराह करने की कोशिश न करें. कोर्ट ने कहा कि कानून का घोर उल्लंघन हुआ है. बड़े पैमाने पर हुए अनियमितता को नियंत्रित कोर्ट जरूर करेगी व जिम्मेदारी को तय करते हुए अधिकारियों पर कार्रवाई करने से भी नही हिचकेगी.

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