सोशल संवाद/डेस्क: कन्नड़ की लेखिका बानू मुश्ताक द्वारा लिखी गई किताब को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 से नवाजा गया है। बानू मुश्ताक कन्नड़ की लेखिका हैं और उनकी किताब का अनुवाद किया है दीपा भस्थी ने। इस पुरस्कार के साथ ही जहां बानू मुश्ताक पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं, जिन्हें बुकर पुरस्कार मिला, वहीं दीपा भस्थी पहली भारतीय अनुवादक हैं, जिन्हें बुकर पुरस्कार जीतने का मौका मिला है।
पुरस्कार जीतने बाद बुकर को दी गई प्रतिक्रिया में बानू मुश्ताक ने कहा कि मेरी कहानियां महिलाओं के बारे में हैं। किस तरह एक महिला से धर्म, समाज और राजनीति उनसे बिना पूछे उनपर अपना हुक्म चलाता है। महिलाओं की इच्छा कोई मायने नहीं रखती हैं और अगर वे विरोध करती हैं तो उनसे अमानवीय क्रूरता तक की जाती है। उन्हें बस एक अधीन व्यक्ति की तरह रखा जाता है. बानू मुश्ताक बताती हैं कि उनका कहानी संग्रह उनके व्यक्तिगत अनुभव पर केंद्रित है।
अपने कहानी संग्रह के बारे में बात करते हुए बानू मुश्ताक कहती हैं कि मैंने शोध अध्ययन नहीं किया है। मैंने दिल के अनुभवों को महत्व दिया है। जो बातें मेरे दिल को छू गईं हैं, उनका जिक्र किताब में है। बानू मुश्ताक बताती है कि मैंने मीडिया में आने वाली घटनाओं और व्यक्तिगत अनुभवों से ही प्रेरणा ली है। चूंकि बुकर पुरस्कार के लिए किताब का अंग्रेजी में प्रकाशित होना जरूरी है, इसलिए बानू मुश्ताक की अनुवादक दीपा भस्थी को भी पूरा क्रेडिट देना पड़ेगा कि उन्होंने ना सिर्फ पहली भारतीय अनुवादक होने का पुरस्कार जीता, बल्कि बेहतरीन तरीके से बानू मुश्ताक की रचनाओं का अनुवाद किया है।
बानू मुश्ताक कर्नाटक के हासन जिले की रहने वाली है. उन्होंने बचपन से ही लेखन शुरू कर दिया था। उनकी पहली कहानी कन्नड़ पत्रिका प्रजामाता में तब प्रकाशित हुई थीं, जब वे महज 26 साल की थी. इस कहानी से उन्हें बहुत ख्याति मिली थी.उन्होंने छह लघु कहानी संग्रह, एक उपन्यास, एक निबंध संग्रह और एक कविता संग्रह लिखा है। उनके लेखन में महिला अधिकारों के प्रति उनकी सजगता को साफ तौर पर देखा जा सकता है. बानू मुश्ताक को अबतक कर्नाटक साहित्य अकादमी और दाना चिंतामणि अत्तिमाबे पुरस्कार सहित कई प्रमुख पुरस्कार मिल चुके हैं.दीपा भस्थी भी एक दक्षिण भारतीय महिला हैं और उन्होंने अबतक कई पुस्तकों का अनुवाद किया है।
Heart Lamp Banu Mushtaq