सोशल संवाद / डेस्क : शिक्षक किसी भी व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा होता है। वो शिक्षक ही होते हैं जो जीवन को दशा और दिशा देते हैं। भारत के प्राचीन काल में ऐसे कई गुरु, शिक्षक रहे हैं जिनकी दी हुई शिक्षा आज भी उतनी ही अहम है।
1.गुरु द्रोणाचार्य – कौरवों और पांडवों को शस्त्रों की शिक्षा देने वाले द्रोणाचार्य का स्थान शिक्षकों में काफी ऊपर कहा जाता है। वो द्रोणाचार्य की शिक्षा ही थी जिसने अर्जुन को एक महान योद्धा बनाया। अर्जुन ने भी कठिन परिश्रम से अपने गुरु का मान रखा, जिससे प्रसन्न होकर द्रोणाचार्य ने अर्जुन को ब्रह्मा के शक्तिशाली दिव्य हथियार ब्रह्मास्त्र का आह्वान करने के लिए मंत्र बताए थे। कहते हैं कि देवगुरु बृहस्पति ने ही द्रोणाचार्य के रूप में जन्म लिया था। द्रोणाचार्य के सिक्षा देने का तरीका उन्हें बाकियों से भिन्न बनती है. वो मायावी पशु , पक्षियों का इस्तेमाल कर के शिक्षा दिया करते है।
2.आदि शंकराचार्य- आदि शंकराचार्य ने भारत के संतों को एकजुट कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया था। उनका जन्म केरल राज्य के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 7 साल की उम्र में इन्होंने वेदों में महारत हासिल कर लिया था। उन्होंने चार धामों को पुनर्जीविक किया और देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की, जिसने अद्वैत वेदांत के ऐतिहासिक विकास, पुनरुद्धार और प्रसार में मदद की। उन्होंने देशभर में अपने विचार और हिंदू धर्म का प्रचार किया।
3.महर्षि वेदव्यास – प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के अनुसार महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा प्राप्त है। तभी तो गुरु पूर्णिमा वेदव्यास को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास का पूरा नाम कृष्णदै्पायन व्यास था। महर्षि वेदव्यास ने ही वेदों, 18 पुराणों और महाकाव्य महाभारत की रचना की थी। महर्षि के शिष्यों में ऋषि जैमिन, वैशम्पायन, मुनि सुमन्तु, रोमहर्षण आदि शामिल थे।
4.गुरु विश्वामित्र –विश्वामित्र महान भृगु ऋषि के वंशज थे। विश्वामित्र के शिष्यों में भगवान राम और लक्ष्मण थे। विश्वामित्र ने भगवान राम और लक्ष्मण को कई अस्त्र-शस्त्रों का पाठ पढ़ाया। एक बार देवताओं से नाराज होकर उन्होंने अपनी एक अलग सृष्टि की रचना कर डाली थी। उन्हें गायत्री मंत्र सहित ऋग्वेद के मंडला 3 के अधिकांश लेखक के रूप में भी श्रेय दिया जाता है। वशिष्ट से युद्धा हार जाने का बाद विश्वामित्र ने अपना राजकाज छोड़, तपस्या में ध्यान लगाया था। घोर तपस्या के बाद उन्होंने वशिष्ट से ही ब्रह्मर्षि का पद लिया था। भगवान राम को परम योद्धा बनाने का श्रेय विश्वामित्र ऋषि को जाता है।
5. चाणक्य –चंद्रगुप्त मौर्य को सत्ता के सिंहासन पर बिठाने के पीछे चाणक्य का ही हाथ कहा जाता है। राजनीति और अर्थशास्त्र को लेकर ये उनकी बारीक समझ ही थी कि उन्हें भारतीय इतिहास का सबसे महान राजनीतिज्ञ कहा जाता है। उन्होंने अपनी कूटनीति और राजनीतिक समझ से चंद्रगुप्त जैसे एक साधारण इंसान को मगध जैसे संगठित राज्य के तख्त पर बैठा दिया। उन्हें कौटिल्य नाम से भी जाना जाता है। पहली बार छोटे-छोटे जनपदों और राज्यों में बंटे भारत को एकसूत्र में बांधने का कार्य आचार्य चाणक्य ने किया था।
6.गुरु वशिष्ठ- गुरु वशिष्ठ की गिनती सप्तऋषियों में भी होती है। सूर्यवंश के कुलगुरु वशिष्ठ थे जिन्होंने राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए कहा था जिसके कारण भगवान राम,लक्ष्मण,भरत और शुत्रुघ्न का जन्म हुआ था। इन चारों भाईयों ने इन्हीं से शिक्षा- दीक्षा ली थी।
7.परशुराम- परशुराम जी को विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। परशुराम जन्म से ब्राह्रमण लेकिन स्वभाव से क्षत्रिय थे उन्होंने अपने माता-पिता के अपमान का बदल लेने के लिए पृथ्वी पर मौजूद समस्त क्षत्रिय राजाओं का सर्वनाश कर डाला था। परशुराम के शिष्यों में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धा का नाम शामिल है। मान्यता है कि परशुराम के जन्म का उद्देश्य धरती पर अत्याचारी राजवंशों को समाप्त करना था। इसीलिए हिंदू मान्यताओं के अनुसार सात चिरंजीवी देवों में से एक परशुराम आज भी पृथ्वी पर ही हैं।
8.रामकृष्ण परमहंस – रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरू थे। एक योगी और आध्यात्मिक गुरू रामकृष्ण परमहंस का झुकाव काली और वैष्णव के तरफ काफी माना जाता है। उनके मुख्य शिष्य स्वामी विवेकानंद ने ही उनके सम्मान में रामकृष्ण मिशन का गठन किया था, जिसका उद्देश्य धर्मों की सद्भावना और मानवता के लिए शांति और समानता को बढ़ावा देना है। आज भी रामकृष्ण मिशन के कई स्कूल पुरे भारत में फैले हुए है।
9.महर्षि सांदीपनि- भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा के गुरु थे महर्षि सांदीपनि। इनका आश्रम आज भी मध्यप्रदेश के उज्जैन में है। सांदीपनि के गुरुकुल में कई महान राजाओं के पुत्र पढ़ते थे। श्रीकृष्णजी की आयु उस समय 18 वर्ष की थी और वे उज्जयिनी के सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रहकर उनसे शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। यही उनका परिचय सुदामा से हुआ था जो आगे चलकर उनके सबसे प्रिय मित्र बने।
10.सुश्रुत – सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक (सर्जन) थे।उनको शल्य चिकित्सा(सर्जरी) का जनक कहा जाता है। ‘सुश्रुत संहिता’ के रचियता आचार्य सुश्रुत का जन्म काशी में हुआ था।इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की थी।सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है।सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की ख़ोज की थी।उन्होंने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी। सुश्रुत आंखों का ऑपरेशन भी करते थे। सुश्रुत संहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी।
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