लाघिमा सिद्धि -The Saadhna of Floating in Air

सोशल संवाद / डेस्क ( रिपोर्ट : तमिश्री )- हनुमान चालीसा में एक पंक्ति आती है, ‘अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, असवर दीन जानकी माता’ इसका अर्थ है कि हनुमानजी आठ सिद्धियों और नौ निधियों को देनेवाले हैं। माता सीता ने उन्हें ऐसा आशीर्वाद दिया था। सिद्धि का अर्थ होता है किसी कार्य की पूर्णता और उसकी सफलता की अनुभूति होना। यह अनुभव जीवन की पूर्णता को प्राप्त करने का माध्यम है।

जब हम किसी के लिए कहते हैं कि उसे इस कार्य में सिद्धि प्राप्त हो गई है तो इसका अर्थ होता है कि उस व्यक्ति ने किसी कार्य विशेष में असामान्य कुशलता प्राप्त कर ली है। वह अपने ही तरीके से दक्षता के साथ उस कार्य को पूर्ण और दूसरों से बेहतर तरीके से करता है। किसी भी कार्य में सिद्धि प्राप्त करने के लिए कठिन साधना की आवश्यकता होती है।  हमारे धर्मग्रंथों में वर्णित आठ सिद्धियां हैं।

उन के नाम : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।

इस विडियो में हम लाघिमा सिद्धि की बात करेंगे । ‘लघिमा’ का अर्थ है लगभग भाररहित हो जाना। इस सिद्धि से स्वयं का भार बिलकुल हवा जैसा हल्का किया जा सकता हैं और पलभर में कहीं भी आया जाया  सकता हैं और भारहीन किसी भी स्थान पर बैठा सकता हैं।

ऐसा कहा जाता है कि लघिमा सिद्धि योग की कुछ तकनीकों के माध्यम से विकसित की जाती है।  साथ ही ध्यान भी आवश्यक है । खासकर संयम , धारणा , और समाधि के साथ ध्यान अगर किया जाय और विशुद्ध चक्र और कुछ अन्य तत्वों जैसे प्राणायाम और अलग अलग साधनाओ  पर केंद्रित रहा जाय तो लाघिमा सिद्धि प्राप्त की जा सकती है ।लाघिमा सिद्धि का उल्लेख देवी भगवत पुराण में मिलता है । पतंजलि के योग सूत्रों के मुताबिक़ , लघिमा सिद्धि किसी के शारीरिक शरीर को अस्थायी रूप से इतना हल्का बनाने की आध्यात्मिक क्षमता है कि वह हवा में तैर सके । शरीर का भार न के बराबर हो जाता है ठीक एक cotton fiber की तरह ।

जब पूरी तरह से महारत हासिल कर लिया जाय और पांचो तत्वों पर नियंत्रण पा लिया जाय तो माना जाता है की आप हवा में अपने साधना की शक्ति से उड़ पाएंगे। इससे आपका शारीर नहीं बदलता बल्कि आपका आपके आस पास के वातावरण  के साथ जो रिश्ता है उसमे बदलाव आता है । खास कर ग्रेविटी । यह जो उड़ान प्रदान करता है वह वायुगतिकीय उड़ान नहीं है जिसमें लिफ्ट और प्रणोदन शामिल है, बल्कि खुले और अबाधित स्थान के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण को अनदेखा करते हुए और हवा पर अलौकिक नियंत्रण रखते हुए आवाजाही है।

अब सवाल ये उठता है की कोई व्यक्ति हवा में कैसे लटकता रहता है वो भी ग्रेविटी के होते हुए।

कुछ प्राणायामों के प्रयोग के बाद योगी का शरीर अपना भार  खो देता है , जिसके बाद हवा में झूले रहना कठिन नहीं होता ।कहा ये भी जाता है की जो सन्यासी योग साधना नहीं भी करता है वो भी अपनी आस्था के बल पर हवा में झूलने की क्षमता रखता है । चेतना द्रव्यमान मुक्त हो जाती है और संपूर्ण ब्रह्मांड रौशनी  का एक अविभाज्य द्रव्यमान बन जाता है । ग्रेविटी सिर्फ भौतिक वस्तुओ पर लागू होती है ।पर एक योगी की चेतना शक्ति धरती की भौतिकता को पार कर चुकी होती है जिस वजह से हवा ने उड़ना या झूलना पूरी तरह संभव हो जाता है , जो स्वयं को अपनी  आत्मा के रूप में जान लेता  है वह अब समय और स्थान में किसी शरीर के अधीन नहीं  रहता।

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