सोशल संवाद /डेस्क : फेफड़ों का कैंसर अब सिर्फ धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं रहा। लंग कैंसर फाउंडेशन ऑफ इंडिया की हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में 21% फेफड़ों के कैंसर के मरीज़ 50 साल से कम उम्र के हैं, और इनमें कई तो 30 की उम्र से भी छोटे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, वायु प्रदूषण अब इस खतरनाक बीमारी का नया चेहरा बन चुका है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आज दुनिया की 91% आबादी ऐसी हवा में साँस ले रही है जो उनके मानकों से भी ज्यादा प्रदूषित है। खासकर PM 2.5 कण — जो उद्योगों, गाड़ियों और आग के धुएँ से निकलते हैं — सीधे हमारे फेफड़ों में घुसकर सिगरेट जितना नुकसान पहुँचा रहे हैं।
20mg PM 2.5 = 1 सिगरेट का नुकसान
200mg PM 2.5 = 10 सिगरेट जितना नुकसान!
डॉ. एस.एम. शुएब जैदी, मैक्स अस्पताल नोएडा के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी हेड का कहना है कि अब निष्क्रिय धूम्रपान और प्रदूषण भी लंग कैंसर के मामलों में तेज़ी से इज़ाफा कर रहे हैं।
कैसे पहचानें फेफड़ों के कैंसर के लक्षण?
लगातार खांसी जो ठीक न हो
खून की खांसी
साँस लेने में दिक्कत
सीने में दर्द
अचानक वजन घटना
आवाज़ में बदलाव
लक्षण मामूली लग सकते हैं, लेकिन इन्हें नज़रअंदाज़ करना भारी पड़ सकता है। डॉक्टर्स सलाह देते हैं कि अगर लक्षण दिखें तो तुरंत जांच कराएँ।
टीबी और लंग कैंसर में क्या है अंतर?
कारण: टीबी – बैक्टीरिया से,
कैंसर – कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि से
लक्षण: दोनों में खांसी और सीने में दर्द सामान्य, लेकिन टीबी में बुखार और रात को पसीना आना आम
उपचार: टीबी – ऐंटीबायोटिक दवाइयाँ
कैंसर – सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन
ध्यान रखें: समय पर जांच और इलाज से लंग कैंसर को काबू किया जा सकता है।
तो अगली बार जब आप खुली हवा में गहरी साँस लें, एक बार सोचिए — कहीं वो ज़हर तो नहीं?








