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केरल में नवरात्रि: पंडाल नहीं, बोम्मईगोलू और देवी का अनोखा दरबार दिखता है

By Muskan Thakur

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केरल में नवरात्रि: पंडाल नहीं, बोम्मईगोलू और देवी का अनोखा दरबार दिखता है

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सोशल संवाद/डेस्क : नवरात्रि और दुर्गा पूजा को आमतौर पर उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शहरों और गांवों में पंडाल सजते हैं, कन्या पूजन होता है, और दशहरा मेले का आयोजन होता है। वहीं, भारत के दक्षिणी राज्य केरल में नवरात्रि का उत्सव पूरी तरह अलग तरीके से मनाया जाता है। यहां पारंपरिक दुर्गा पूजा के बजाय बोम्मईगोलू नामक झांकियों और गुड़ियों की सजावट की जाती है। यह परंपरा मुख्य रूप से मंदिरों और आश्रमों में होती है, जिसमें न केवल देवी-देवताओं बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक प्रतीकों को भी दर्शाया जाता है।

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अमृता विद्यापीठम में नवरात्रि

केरल के कोल्लम जिले में स्थित अमृता विद्यापीठम (अमृतापुरी) के आश्रम में नवरात्रि के दौरान देवी-देवताओं की झांकी सजाई जाती है। इसे बोम्मईगोलू कहते हैं। यहां की झांकी में 5 से 11 पायदानों तक सीढ़ीनुमा स्टैंड पर विभिन्न प्रतिमाएं सजाई जाती हैं। निचले पायदान पर मनुष्य और जीव-जगत के प्रतीक होते हैं, उसके ऊपर देवता और देवी, और सबसे ऊपरी सीढ़ी पर आदिशक्ति या महाशक्ति की झांकी होती है।

यहां आने पर स्पष्ट होता है कि केरल के नवरात्रि उत्सव का केंद्र पंडाल और मेले से नहीं बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक झांकियों से है।

बोम्मईगोलू की विशेषता

बोम्मईगोलू का शाब्दिक अर्थ है “गुड़ियों का दरबार।” इसमें हाथ से बनी छोटी-छोटी प्रतिमाओं को सजाया जाता है। पहले इन्हें घरों में सजाया जाता था, लेकिन अब मंदिरों और आश्रमों में ही अधिक देखा जाता है। ये न केवल देवी-देवताओं के प्रतीक हैं बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक व्यक्तित्व को भी दर्शाते हैं।

निचले पायदान पर किसान, मछुआरे, साधु और सामान्य जीवन से जुड़े लोग होते हैं। उसके ऊपर सूर्य, चंद्रमा, ग्रह-तारे और ऐतिहासिक व्यक्तित्व, जैसे महात्मा गांधी, अक्कामा चेरियन आदि की प्रतिमाएं होती हैं। फिर देवता और देवी, जैसे राम, कृष्ण, शिव, गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती, काली और विष्णु के दशावतार। सबसे ऊपरी सीढ़ी पर बड़ी गोलू, अर्थात आदिशक्ति विराजमान होती हैं।

इस संरचना के माध्यम से यह प्रतीक मिलता है कि जीवन में आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति क्रमशः होती है।

नवरात्रि के नौ दिन और पूजा विधि

केरल में नवरात्रि के नौ दिन अलग-अलग देवियों को समर्पित होते हैं। पहले तीन दिन पार्वतीअम्मन की पूजा होती है, अगले तीन दिन मायालक्ष्मी की पूजा और आखिरी तीन दिन महासरस्वती की पूजा की जाती है।

बोम्मईगोलू की झांकियां नवरात्रि के पहले दिन से सजाई जाती हैं और लोगों द्वारा मिल-जुलकर मंदिरों में रखी जाती हैं। कुछ घरों में भी इसे सजाया जाता है, लेकिन यह परंपरा अधिकतर ब्राह्मण और उच्च जातियों के घरों में प्रचलित रही है।

विजयदशमी के दिन सरस्वती पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन बच्चों के हाथों पर चावल के आटे से ऊँ या स्वास्तिक बनाकर उनकी पढ़ाई की उन्नति की कामना की जाती है। टीचर्स और स्टूडेंट्स पेन-पेंसिल की पूजा करते हैं, माली अपने औजारों की और गृहिणियां रसोई के बर्तनों की पूजा करती हैं। आयुध पूजा में हथियार और काम आने वाली सभी वस्तुएं शामिल होती हैं।

केरल का सांस्कृतिक दृष्टिकोण

केरल में नवरात्रि केवल धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश भी देता है। बोम्मईगोलू में देवताओं के साथ समाज के महान व्यक्तित्व और जीव-जगत के प्रतीक जुड़े होते हैं। इससे यह शिक्षा मिलती है कि नवरात्रि का उद्देश्य केवल देवी की पूजा नहीं, बल्कि जीवन की उन्नति और समाज के मूल्य को भी मान्यता देना है।

स्थानीय अनुभव

आश्रमी और मंदिरों में घूमते हुए यह देखा जा सकता है कि केरल के लोग नवरात्रि के दिनों में बड़े उत्साह से गोलू झांकियों को देखते और सम्मान देते हैं। हालांकि, घरों में इसे सजाने का चलन उतना प्रचलित नहीं है। ग्रामीण इलाकों में भी लोग मंदिरों में झांकियों का दर्शन करके प्रसाद लेते हैं और उत्सव का आनंद उठाते हैं।

केकेरल की यह परंपरा उत्तर भारत के पंडालों और मेले की तुलना में शांत, परंतु सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध और अर्थपूर्ण है।

FAQ

1. केरल में नवरात्रि कब मनाई जाती है?
नवरात्रि के नौ दिन दक्षिण भारत में अलग-अलग देवी को समर्पित होते हैं। पहले तीन दिन पार्वतीअम्मन, अगले तीन दिन मायालक्ष्मी और अंतिम तीन दिन महासरस्वती की पूजा होती है।

2. बोम्मईगोलू क्या है?
बोम्मईगोलू हाथ से बनी छोटी-छोटी प्रतिमाओं और गुड़ियों की झांकी होती है। इसे “गुड़ियों का दरबार” भी कहा जाता है और यह मुख्य रूप से मंदिरों में सजाई जाती है।

3. क्या केरल में कन्या पूजन होता है?
नहीं, केरल में कन्या पूजन नहीं होता। यहाँ विजयदशमी पर मुख्य रूप से सरस्वती पूजा और आयुध पूजा की जाती है।

4. घर में बोम्मईगोलू सजाना आम है?
केरल में इसे अधिकतर मंदिरों और आश्रमों में सजाया जाता है। कुछ बड़े घरों में भी इसे सजाया जाता है, लेकिन यह परंपरा हर घर में नहीं है।

5. बोम्मईगोलू में किन-किन चीज़ों की झांकियां होती हैं?
नीचे पायदान पर मनुष्य और जीव-जगत, उसके ऊपर ग्रह-तारे और ऐतिहासिक व्यक्तित्व, फिर देवता और देवी, और सबसे ऊपरी सीढ़ी पर आदिशक्ति की झांकी होती है।

इस लेख में हमने केरल में नवरात्रि की अनूठी परंपरा, बोम्मईगोलू की महत्वता और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं को विस्तार से समझा। यह दर्शाता है कि नवरात्रि केवल पूजा का उत्सव नहीं बल्कि जीवन, समाज और संस्कृति के गहरे अर्थ से जुड़ा त्योहार है।

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