सोशल संवाद / नई दिल्ली (रिपोर्ट – सिद्धार्थ प्रकाश ) : दिल्ली की बुराड़ी और तिमारपुर विधानसभाओं की सड़कों पर पसरी गंदगी और अव्यवस्था प्रशासन की उदासीनता का जीवंत प्रमाण है। कूड़ेदान की कमी और नियमित सफाई व्यवस्था के अभाव में कचरा खुले में पड़ा रहता है, जिससे सड़कें कूड़ा घर बन चुकी हैं। नतीजा यह है कि आवारा पशु, खासकर गायें, इस कचरे में प्लास्टिक और अन्य हानिकारक वस्तुएं खाने को मजबूर हैं। यह दृश्य न सिर्फ हमारी इंसानियत पर सवाल उठाता है, बल्कि नगर निगम की असफलता की एक क्रूर तस्वीर भी पेश करता है। क्या इन बेजुबान जानवरों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं? क्या प्रशासन की ज़िम्मेदारी सिर्फ फाइलों में सिमट कर रह गई है?
इन इलाकों में बदहाल सफाई व्यवस्था का असर आम जनता पर भी साफ दिखाई देता है। जगह-जगह बिखरे कूड़े से उठने वाली दुर्गंध के बीच लोगों का चलना-फिरना तक मुश्किल हो जाता है। सड़कों पर फैला कचरा और जलभराव बीमारियों को न्योता देते हैं, लेकिन नगर निगम के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। सफाई कर्मचारियों की संख्या या तो पर्याप्त नहीं है, या फिर उनका कामकाज पूरी तरह से लचर हो चुका है। जनता बार-बार शिकायतें करती है, लेकिन प्रशासन की सुस्ती और लापरवाही के चलते हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
इस गंदगी और लापरवाही का एक और खतरनाक पहलू है सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती आशंका। सड़कों पर बिखरे कचरे के ढेर और अचानक बीच सड़क पर आ जाने वाले आवारा पशु वाहन चालकों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। कई बार दोपहिया वाहन फिसलकर गिर जाते हैं, और रात के अंधेरे में जानवरों से टकरा जाने की घटनाएं आम हो गई हैं। यह क्षेत्र धीरे-धीरे दुर्घटना संभावित क्षेत्र बनता जा रहा है, लेकिन प्रशासन मानो किसी बड़े हादसे के इंतजार में है। यह सवाल बार-बार उठता है कि आखिर जनता को साफ-सुथरा और सुरक्षित परिवेश देना क्या नगर निगम की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है?
इस विकट स्थिति के बावजूद नगर निगम की उदासीनता निंदनीय है। सफाई के लिए तय बजट कहां जाता है? क्यों समय पर कचरा नहीं उठाया जाता? क्यों आवारा पशुओं के लिए आश्रय की व्यवस्था नहीं की जाती? इन सभी सवालों के जवाब जनता मांग रही है, लेकिन अफसोस की बात है कि उसे सिर्फ प्रशासन की खामोशी मिलती है। बुराड़ी और तिमारपुर की जनता को अब इस लापरवाही के खिलाफ आवाज उठानी होगी। यह सिर्फ सफाई का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह जीवन की गरिमा और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा प्रश्न है। अगर प्रशासन को उसकी जिम्मेदारियों का अहसास नहीं कराया गया, तो हालात और बिगड़ते जाएंगे, और इसकी कीमत अंततः आम जनता को ही चुकानी पड़ेगी। `