सोशल संवाद / डेस्क : भारतीय संविधान लागू होने के 75वें वर्षों के बाद न्याय की प्रतीक देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हट गई है. हाथ में तलवार की जगह अब संविधान ने ले ली. हाल में, सरकार ने अंग्रेजों के जमाने के कानून बदले थे. अब न्यायपालिका भी बदलाव की राह पर है. नई प्रतिमा यह संदेश दे रही है कि देश में कानून अंधा नहीं है और न ही यह दंड का प्रतीक है.
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आपको बता दे इससे पहले माना जाता था कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी कानून के समक्ष समानता का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका अर्थ है कि न्यायालय अपने समक्ष उपस्थित होने वाले व्यक्तियों की संपत्ति, शक्ति या स्थिति के अन्य चिह्नों को नहीं देख सकते हैं, जबकि तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की शक्ति का प्रतीक माना जाता था.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का मानना है कि भारत को अंग्रेजी विरासत से आगे निकलने की जरूरत है. कानून कभी अंधा नहीं होता. वह सभी को एकसमान रूप से देखता है. इसलिए न्याय की देवी का स्वरूप भी बदला जाना चाहिए. हाथ में संविधान संदेश देता है कि न्याय संविधान के अनुसार किया जाता है. दूसरे हाथ में तराजू, प्रतीक है कि कानून की नजर में सभी समान हैं. तलवार हिंसा का प्रतीक है, लेकिन अदालतें संवैधानिक कानूनों के अनुसार न्याय करती हैं. न्याय के तराजू को दाहिने हाथ में रखा गया है, क्योंकि वे समाज में संतुलन का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह माना जाता है कि निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अदालतें दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को तौलती हैं.
सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों का कहना है कि यह नई प्रतिमा पिछले साल बनाई गई थी और इसे अप्रैल 2023 में नई जज लाइब्रेरी के पास स्थापित किया गया था. लेकिन अब इसकी तस्वीरें सामने आई हैं जो वायरल हो रही हैं. नई प्रतिमा को औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है, ठीक उसी तरह जैसे भारतीय दंड संहिता जैसे औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानूनों को भारतीय न्याय संहिता से बदलकर किया गया था.