सोशल संवाद / नई दिल्ली (रिपोर्ट – सिद्धार्थ प्रकाश) : देश के सबसे बड़े औद्योगिक घरानों में से एक रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) पर ₹17,000 करोड़ की गैस चोरी का आरोप पिछले एक दशक से चर्चा में है। यह मामला 2013 में सामने आया, जब सरकारी कंपनी ओएनजीसी (ONGC) ने दावा किया कि रिलायंस ने उनके गैस ब्लॉक से प्राकृतिक गैस अवैध रूप से निकाल ली।
कैसे शुरू हुआ ₹17,000 करोड़ का यह विवाद?
2014 में, ONGC ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि रिलायंस उनकी संपत्ति से गैस निकालकर अवैध मुनाफा कमा रही है। मामला कृष्णा-गोदावरी (KG) बेसिन से जुड़ा है, जहां ONGC और RIL के ब्लॉक आपस में सटे हुए हैं। ONGC का आरोप था कि रिलायंस ने अपनी ड्रिलिंग साइट्स को इस तरह डिजाइन किया कि उनकी गैस ONGC के क्षेत्र से खिंचकर RIL के ब्लॉक तक पहुंच जाए। ONGC ने कोर्ट से एक स्वतंत्र जांच की मांग की, जिससे इस पूरे मामले की सच्चाई सामने आ सके।
जांच रिपोर्ट में बड़ा खुलासा!
ONGC और रिलायंस दोनों की सहमति से, अमेरिकी फर्म DeGolyer and MacNaughton (D&M) को जांच सौंपी गई। D&M की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि ONGC के ब्लॉक से गैस वाकई में RIL के ब्लॉक में खींची जा रही थी और रिलायंस इसका फायदा उठा रही थी।
रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस ने इस गैस से लगभग $1.7 बिलियन (₹17,000 करोड़) का मुनाफा कमाया।
सरकार और हाई कोर्ट की दलीलें
D&M रिपोर्ट के बाद, भारत सरकार ने 2015 में रिलायंस और उसके विदेशी साझेदारों (BP Plc, Niko Resources) पर “अनुचित लाभ” और “धोखाधड़ी” का आरोप लगाया। सरकार ने रिलायंस से इस नुकसान की भरपाई की मांग की और मामला अंतरराष्ट्रीय पंचाट में गया।
2018 में, अंतरराष्ट्रीय पंचाट (Arbitration Tribunal) ने 2-1 के फैसले में रिलायंस के पक्ष में निर्णय दिया। अदालत ने माना कि प्रोडक्शन शेयरिंग एग्रीमेंट (PSA) के तहत रिलायंस को अपने ब्लॉक से गैस निकालने की अनुमति थी, भले ही गैस ONGC के क्षेत्र से वहां पहुंची हो।
इस फैसले को भारत सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा?
2018 में, दिल्ली हाई कोर्ट ने रिलायंस और उसके साझेदारों से जवाब मांगा। मई 2023 में, न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने सरकार की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि रिलायंस के खिलाफ धोखाधड़ी या अनुचित लाभ का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ!
सितंबर 2023 में, भारत सरकार ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील की। अब हाई कोर्ट ने रिलायंस से फिर जवाब मांगा है।
सरकार की ओर से भारत के महान्यायवादी (Attorney General) ने कोर्ट में दलील दी कि रिलायंस को पहले से पता था कि गैस ब्लॉक आपस में जुड़े हुए हैं, और उसने जानबूझकर गैस खींचकर मुनाफा कमाया।
क्या रिलायंस को ₹17,000 करोड़ चुकाने होंगे?
अब मामला डिवीजन बेंच के समक्ष लंबित है, और आने वाले महीनों में अदालत का बड़ा फैसला आ सकता है।
“सोशल संवाद” सिद्धार्थ प्रकाश की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट को लेकर हम लगातार इस केस पर नजर बनाए रखेंगे। क्या सरकार रिलायंस से ₹17,000 करोड़ की वसूली कर पाएगी? या रिलायंस फिर से बच निकलने में सफल होगा?
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