सोशल संवाद / दिल्ली : 2011 में तत्कालीन नागरिक संगठन URJA एवं केजरीवाल के नये आंदोलन के दबाव में शीला दीक्षित सरकार ने बिजली दरें बढ़ाने की जगह 1.5% PPAC लगाया। BJP ने इसका जम के विरोध किया, कुछ नागरिक संगठन कोर्ट भी गये।
2014 में जब दिल्ली में राष्ट्रपति शासन था तब तत्कालीन दिल्ली भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय जी RWAs का प्रतिनिधिमंडल लेकर तत्कालीन Power Minister पीयूष गोयाल के पास गये जिन्होने Power Discoms से बात करके PPAC पर रोक लगाई। लगभग अगस्त 2014 से सितम्बर 2015 तक दिल्ली में बिजली बिलों में PPAC नही लगा।
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अरविंद केजरिवाल सरकार ने PPAC फिर से लागू किया। Power Discoms बार बार बिजली के Per Unit Rates बढ़ाने की मांग करती थी । राजनीतिक लाभ के लिए केजरिवाल ने कभी बिजली के प्रति यूनिट रेट नही बढ़ने दिये । पर PPAC जो 2015 में मात्र 1.7% था को आज 37% तक लागू कर दिया और अब BSES Rajdhani के प्रस्तावित 8.75 के लागू होते ही लगभग 46% हो जायेगा।
केजरिवाल ने PPAC ने दिल्ली में Power Tariff calculate के लिए Business Regulation Plan का हिस्सा बना कर इसको Legal Sanctity दी। Pension Surcharge जो 2015 में 1% था आज 7.5% है। मीटर चार्ज एवं लोड अधिभार Kejriwal के 10 साल में तीन गुना तक बढ़े हैं। केजरिवाल सरकार के समय पर pre payment कर Power Grids से advance बिजली खरीद प्लान ना बनाने की कीमत चुका रहे हैं दिल्ली वाले। यदि समय पर advance Power खरीद हो तो कोई PPAC ना लगाना पड़े।
केजरीवाल एवं अतिशी जवाब दें PPAC 1.5 से 46% तक ले आये कभी वापस क्यों नही हुआ — जब बिजली सस्ती हुई तो वापस लेते।