सोशल संवाद / डेस्क : साल 1669, ये वो साल था जब मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों को तोड़ने की कसम खाई थी । देश के कई मंदिरों पर हमला कर के उसने उन्हें ध्वस्त कर दिया। उनमे सोमनाथ मंदिर, काशी विश्वनाथ समेत कई मंदिर शामिल हैं। अनेक मंदिरों की तोडफ़ोड़ के साथ वृंदावन में गोवर्धन के पास श्रीनाथ जी के मंदिर को तोड़ने का काम भी शुरू हो गया। इससे पहले कि श्रीनाथ जी की मूर्ति को कोई नुक्सान पहुंचे, मंदिर के पुजारी दामोदर दास बैरागी ने मूर्ति को मंदिर से बाहर निकाल लिया।
दामोदर दास बैरागी वल्लभ संप्रदाय के थे और वल्लभाचार्य के वंशज थे। उन्होंने बैलगाड़ी में श्रीनाथजी की मूर्ति को स्थापित किया और उसके बाद वह बूंदी, कोटा, किशनगढ़ और जोधपुर तक के राजाओं के पास आग्रह लेकर गए कि श्रीनाथ जी का मंदिर बनाकर उसमें मूर्ति स्थापित की जाए। लेकिन औरंगजेब के डर से किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी।
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आखिरकार दामोदर दास वैरागी ने मेवाड़ के राजा राणा सिंह के पास ये संदेश भिजवाया। राणा राजसिंह पहले भी औरंगजेब को चुनौती दे चुके थे। दरअसल साल 1660 में औरंगजेब किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह करना चाहते थे ,लेकिन चारुमती ने साफ इनकार कर दिया। तब किशनगढ़ वालों ने रातों-रात राणा राजसिंह को संदेश भिजवाया और राणा राजसिंह से चारुमती से विवाह कर लेने की बात कही। राणा राजसिंह ने भी बिना कोई देरी किये किशनगढ़ पहुंचकर चारुमती से विवाह कर लिया। इससे औरंगजेब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और वह राणा राजसिंह को अपना सबसे बड़ा शत्रु समझने लगा था।
उन्हें औरंगजेब का भय नहीं था उन्होंने दामोदर दास वैरागी को विशवास दिलवाया और कहा कि मेरे रहते हुए श्रीनाथजी की मूर्ति को कोई छू तक नहीं पाएगा। आपको बतादे उस समय श्रीनाथजी की मूर्ति बैलगाड़ी में जोधपुर के पास चौपासनी गांव में थी और बैलगाड़ी में ही श्रीनाथ जी की पूजा होती थी ।जिस स्थान पर यह बैलगाड़ी खड़ी थी वहीं श्रीनाथ जी का मंदिर बनवाया गया । बताते चलें कि कोटा से 10 किमी दूर श्रीनाथजी की चरण पादुकाएं उसी समय से आज तक रखी हुई हैं, उस जगह को चरण चौकी के नाम से जाना जाता है। बाद में चौपासनी से मूर्ति को सिहाड़ लाया गया। दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथ जी की मूर्तियों का स्वागत करने के लिए राणा राजसिंह स्वयं गांव गए। यह सिहाड़ गांव उदयपुर से 30 मील एवं जोधपुर से लगभग 140 मील की दूरी पर स्थित है जिसे आज हम नाथद्वारा के नाम से जानते हैं। फरवरी 1672 को मंदिर का निर्माण संपूर्ण हुआ और श्री नाथ जी की मूर्ति मंदिर में स्थापित कर दी गई।
बताया जाता है औरंगजेब अपनी सेना को लेकर मंदिर को तोड़ने पंहुचा था लेकिन जैसे ही वो मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ने लगा उसकी आंखों की रोशनी कम होने लगी। इस घटना से वह बहुत डर गया, भयभीत होकर उसने तुरंत श्रीनाथ जी से अपने पापों के लिए क्षमा मांगी। इसके बाद उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई। वह तुरंत ही अपनी सेना समेत उल्टे पांव लौट गया।
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इस मंदिर में भगवान कृष्ण की बाल रूप की पूजा होती है। यही श्रीकृष्ण सात वर्षीय ‘शिशु’ अवतार के रूप में विराजित हैं। श्रीनाथ जी मंदिर में देशभर से भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं । यहाँ मांगी हर इच्छा पूरी होती है ।इस मंदिर के कपाट सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण पर भी खुले रहते है । जन्माष्टमी के मौके पर यहां 21 तोपों की सलामी भी दी जाती है।
मंदिर में स्थित श्रीनाथजी का विग्रह बिल्कुल उसी अवस्था में खड़ा हुआ है, जिस अवस्था में बाल रूप में श्रीकृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को उठाया था। भगवान श्रीनाथजी का विग्रह दुर्लभ काले संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है। विग्रह का बायां हाथ हवा में उठा हुआ है और दाहिने हाथ की मुट्ठी को कमर पर टिकाया हुआ है। श्रीनाथजी के विग्रह के साथ में एक शेर, दो-दो गाय, तोता व मोर भी दिखाई देते हैं। इन सबके अलावा तीन ऋषि मुनियों की चित्र भी विग्रह के पास रखे हुए हैं। भगवान के होठों के नीचे एक हीरा भी लगा हुआ है। कहते हैं वह मुगल शासक औरंगजेब की मां ने ही भेंट किया था जब औरंगजेब की आँखों की रौशनी चली जा रही थी।
इस मंदिर के भगवान छोटे बच्चे के रूप में होने के कारण कई बार भक्त भगवान के लिए छोटे बच्चों की खेलने के चीजें भी लाते हैं। कुछ भक्त चांदी से बनाये हुए जानवर, गाय और गाय चरानेवाले छोटी-छोटी लाठी पूजा के दौरान भगवान को चढ़ाते है।
श्रीनाथजी के दरबार से आम आदमी से लेकर खास तक, सभी का गहरा नाता है। श्रीनाथ मंदिर में करोड़ों लोगों की आस्था है और पूरे वर्ष भक्तों का यहां आना लगा रहता है, जिसमें मुकेश अंबानी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल है। अंबानी परिवार किसी भी शुभ कार्य से पहले यहां दर्शन करने जरूर आते हैं। अपनी बेटी की शादी का पहला न्योता भी अंबानी परिवार ने श्रीनाथ जी को दिया था। और अनंत अम्बानी की सगाई के समय भी वे यहाँ आए थे ।
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