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शुभांशु शुक्ला: स्पेस मिशन में डर लगता है, पर टीम पर होता है पूरा भरोसा

By Riya Kumari

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Shubhanshu Shukla:

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सोशल संवाद/डेस्क : इंडियन एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने कहा कि एक्सियम मिशन के तहत हम इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में दो हफ्ते रहे। मैं मिशन पायलट था, मैं कमांडर था मैं सिस्टम को कमांड कर रहा था। ISS में दो हफ्ते के दौरान हमने कई एक्सपेरिमेंट किए। कुछ तस्वीरें लीं। इसके लिए हमने कई ट्रेनिंग ली। यह एक अलग ही अनुभव था।

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दिल्ली में मीडिया सेंटर में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए शुभांशु ने कहा- अगर हम कहें कि डर कभी नहीं लगता, ये कहना गलत होगा। डर सबको लगता है लेकिन हमारे पीछे एक भरोसेमंद टीम होती है जिसे हम अपनी जिंदगी सौंप देते हैं।

शुभांशु शुक्ला की प्रेस कॉन्फ्रेंस, 2 बड़ी बातें…

 ह्यूमन स्पेस मिशन को अंजाम देने का फायदा सिर्फ ट्रेनिंग तक ही सीमित नहीं है। वहां रहकर जो अतिरिक्त ज्ञान हमें मिलता है, वह अमूल्य है। पिछले एक साल में मैंने जो भी जानकारी इकट्ठा की है, वह हमारे अपने मिशनों, गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए बेहद उपयोगी होगी।

बहुत जल्द हम अपने कैप्सूल से, अपने रॉकेट से और अपनी धरती से किसी को अंतरिक्ष में भेजेंगे। यह अनुभव जमीन पर सीखे गए अनुभवों से बहुत अलग होता है। शरीर कई बदलावों से गुजरता है। अंतरिक्ष में 20 दिन बिताने के बाद शरीर ग्रेविटी में रहना भूल जाता है।

शुभांशु शुक्ला से 5 सवाल-जवाब…

सवाल: आपने जो एक्सपेरिमेंट्स किए हैं जिनके बारे में आपने पहले भी बताया है। उन पर क्या प्रोग्रेस है?

जवाब: हमने जो एक्सपेरिमेंट किए हैं, उन पर काम जारी है। डेटा एनालिसिस और रिजल्ट के बिना कुछ नहीं कहा जा सकता। कुछ महीनों में सब सामने आ जाएगा।

सवाल: आपको गगनयान मिशन की ट्रेनिंग दी गई, यह एक्सियम मिशन से कितनी अलग है?

जवाब: हमने रूस, भारत और अमेरिका में ट्रेनिंग ली है। इनका ट्रेनिंग सेटअप भले अलग हो लेकिन लक्ष्य एक है। हां सभी का तरीका अलग है।

सवाल: एक्सियम मिशन से क्या सीखा जो गगनयान मिशन में काम आएगा?

जवाब: देखिए ह्यूमन स्पेस मिशन में इंसान की जिंदगी जुड़ी होती है। हमें ट्रेनिंग दी जाती है किताबें पढ़ते हैं लेकिन हकीकत कुछ और होती है। इस मिशन से हमने सीखा कि किताबों से अलग वो जिंदगी कितनी अलग होती है।

सवाल: जब रॉकेट उड़ा तो आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आया?

 जवाब: मैं बहुत एक्साइटेड था हालांकि ये मिशन रिस्की होते हैं। आपको इसके बारे में पता होता है। आम जिंदगी में भी कहीं न कहीं रिस्क होता ही है। इसलिए मैंने इसे मैनेज किया। इस पर जितेंद्र सिंह ने भी जवाब देते हुए कहा कि, आंकड़ों पर नजर डालें तो रोड एक्सीडेंट की तुलना में स्पेस मिशन फेल्योर की संख्या काफी कम है।

सवाल: आपने कहा कि बहुत अविश्वनीय अनुभव था, यह अनुभव गगनयान में काम आएगा। कठिन समय में किसे याद करते हैं?

जवाब: हम ट्रेनिंग के दौरान सोचते हैं कि मिशन कैसा होगा। जब लॉन्चिंग की बारी आती है तो उस फीलिंग को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।

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