सोशल संवाद/दिल्ली (रिपोर्ट – सिद्धार्थ प्रकाश ) : भारतीय अर्थव्यवस्था में जितनी भी खतरे की घंटियां बज रही हैं, वे केवल प्रधानमंत्री मोदी को ही नहीं सुनाई दे रही हैं। उनके कार्यकाल में भारत में बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई, महंगाई आसमान छू रही है, वास्तविक मजदूरी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है – कई क्षेत्रों में गिरावट ही आई है, ग्रामीण भारत गंभीर संकट से जूझ रहा है और असमानता चरम पर है। वित्तीय और निवेश सेवाएं प्रदान करने वाली एक कंपनी की ताज़ा रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का भारतीय परिवारों पर पड़ने वाले विनाशकारी प्रभाव को दिखाती है:
• रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2023 तक घरेलू ऋण का स्तर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 40% हो गया। यह अब तक का सबसे अधिक है।
सके अलावा, घरेलू बचत भी 47 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। शुद्ध वित्तीय बचत GDP के 5 % पर आ गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बचत में यह “आश्चर्यजनक” गिरावट आय में वृद्धि कम होने के कारण है। इससे पता चलता है कि 2023-24 में निजी खपत और घरेलू इन्वेस्टमेंट ग्रोथ कम क्यों रही है। 2023-24 के पहले नौ महीनों में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत जीडीपी के लगभग 5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित थी। कम बचत का अर्थ है व्यापार और सरकारी निवेश के लिए कम पूंजी उपलब्ध होना और अस्थिर विदेशी पूंजी पर बढ़ती निर्भरता।
रिपोर्ट यह भी पुष्टि करती है कि असुरक्षित पर्सनल लोन में बढ़ोतरी घरेलू ऋण के उच्च स्तर के लिए ज़िम्मेदार है, न कि होम लोन या कार लोन, जैसा कि वित्त मंत्रालय हमें विश्वास दिलाना चाहता है। पर्सनल लोन में हाउसिंग की हिस्सेदारी वास्तव में 5 वर्षों में पहली बार 50% से नीचे है, और केवल हाई-एंड ऑटोमोबाइल ही अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि बाज़ार में कारों और 2-पहिया वाहनों की बिक्री में बड़े पैमाने पर गिरावट आई है। दिसंबर में गोल्ड लोन्स में भी चिंताजनक रूप से वृद्धि देखी गई – भावनात्मक लगाव को देखते हुए लोग सोने के आभूषण जैसी चीज़ों को गिरवी रखकर लोन केवल अंतिम उपाय के रूप में ही लेते हैं।
भले ही मोदी सरकार इसे स्वीकार न करे लेकिन सच्चाई यह है कि मजदूरी में बढ़ोतरी न होने और आसमान छूती महंगाई ने परिवारों को गुज़र बसर करने के लिए ऋण लेने को मजबूर किया है। वित्त मंत्रालय इसे जितना चाहे घुमा ले, लेकिन सच्चाई सबके सामने है – पैसा बचाना तो दूर, भारतीय परिवार धीरे-धीरे कर्ज़ में डूबते जा रहे हैं।
इस रिपोर्ट के निष्कर्ष भी मोदी सरकार की आर्थिक विफलताओं की सूची में शामिल हो गए हैं:
* रोजगार में लगभग शून्य वृद्धि – 2012 और 2019 के बीच केवल 0.01% नई नौकरियां जुड़ीं, जबकि हर साल 70-80 लाख युवा श्रम बल में शामिल होते हैं।
* 2012 और 2022 के बीच नियमित रूप से वेतन पाने वाले श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी में गिरावट आई है। भयंकर महंगाई के कारण, श्रमिक अब दस साल पहले की तुलना में कम ख़र्च कर पा रहे हैं।
* वित्त वर्ष 2023-24 में मनरेगा के तहत ग़रीब ग्रामीण परिवारों द्वारा मांगे गए काम के दिनों की संख्या 305 करोड़ हो गई है। 2022-23 में यह 265 करोड़ थी। मनरेगा में काम मांगने की संख्या में इस तरह की बढ़ोतरी होना गंभीर ग्रामीण संकट का संकेत है। कांग्रेस पार्टी का न्याय पत्र इन विफलताओं का सीधा रिस्पांस है। पिछले दस साल का अन्याय-काल 4 जून को समाप्त होगा।