सोशल संवाद/दिल्ली (रिपोर्ट – सिद्धार्थ प्रकाश ) : प्रधानमंत्री के चीयरलीडर्स और उनके लिए ढोल पीटने वाले चीन के आधिकारिक मीडिया द्वारा की गई उनकी प्रशंसा से ख़ुश हैं। और चीन से उन्हें सराहना मिलनी भी क्यों नहीं चाहिए? आख़िरकार यह सिर्फ़ और सिर्फ़ वही थे जिन्होंने :
1. 19 जून 2020 को सार्वजनिक रूप से यह बयान देकर कि “न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है और न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है,” उन्होंने चीनियों को क्लीन चिट दी थी। उनके उस झूठ से न सिर्फ़ हमारे सैनिकों का घोर अपमान हुआ बल्कि कोर कमांडर-स्तर की 18 दौर की वार्ता के दौरान बातचीत में हमारी स्थिति भी बहुत कमज़ोर हुई। उनके उस बयान के कारण ही मई 2020 से 2,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीन को नियंत्रण जारी रखने में मदद मिली है। प्रधानमंत्री के बयान के विपरित लेह के पुलिस अधीक्षक ने एक पेपर प्रस्तुत किया जिसमें कहा गया कि भारत अब 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स में से 26 तक नहीं जा सकता है।
2. भारत को रूस में उन्हीं चीनी सैनिकों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करने की अनुमति दी गई जो लद्दाख में हमारे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर रहे हैं। 1-7 दिसंबर को 7/8 गोरखा राइफल्स के भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी ने रूस के वोस्तोक 2022 अभ्यास में भाग लिया जिसमें चीन भी शामिल था। क्या हमारे 20 बहादुर सैनिकों का सर्वोच्च बलिदान इतनी आसानी से भुला दिया गया?
3. भारत की क़ीमत पर चीन को मालदीव, भूटान और श्रीलंका में प्रभाव जमाने की अनुमति दी गई। मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का मालदीव से अपनी सेना वापस बुलाने के लिए भारत से अनुरोध करना भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा झटका है। 2017 में “जीत” के दावों के बावजूद भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास डोकलाम क्षेत्र में बड़े पैमाने पर चीन सेना का निर्माण कार्य जारी है।
4. “मेक इन इंडिया” के वादों के बावजूद चीन से तेज़ी से आयात की सुविधा प्रदान की गई, जिसके कारण देश को 2022 और 2023 में रिकॉर्ड व्यापार घाटा हुआ है। इसे बढ़ाने के लिए मोदी सरकार चीन से काफ़ी कम वैल्यू एडिशन के साथ मोबाइल फ़ोन के पार्ट्स के आयात को बढ़ावा दे रही है। ऐसा आत्मनिर्भर भारत” को सफलता दिखाने के लिए जा रहा है, जो कि राष्ट्र हित को कमज़ोर करके राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा देने का खोखला प्रयास है। इस बीच मोदी सरकार चीनी कामगारों के लिए भारतीय वीज़ा के प्रावधान को आसान बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। मोदी सरकार में चीन के आर्थिक हित स्पष्ट रूप से सुरक्षित हैं।
5. वर्ष 2018 में, RSS प्रमुख मोहन भागवत ने वादा किया था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो RSS “तीन दिनों के भीतर” सीमा पर चीन से लड़ने के लिए सेना तैयार सकती है। जबकि उन्होंने कहा था कि भारतीय सेना को 6-7 महीने लगेंगे। चीनी घुसपैठ के चार साल बाद भी किसी ऐसी मोर्चेबंदी के तो संकेत नहीं हैं, लेकिन RSS ने दिसंबर 2023 की शुरुआत में अपने नागपुर मुख्यालय में चीनी राजनयिकों के एक समूह की मेज़बानी जरूर की है।
चीन की घुसपैठ के जवाब में प्रधानमंत्री ने अपनी आंखें बंद कर ली, उसकी सेना के साथ सहयोग किया, उसे भारत के पड़ोसी देशों में प्रभाव जमाने दिया, चीन पर भारत की आर्थिक निर्भरता बढ़ा दी और RSS को उसके राजनयिकों को सम्मानित करने की इजाज़त दी। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि चीन के साथ रिश्ते ”सामान्य नहीं” हैं। लेकिन जो बात सही मायने में में असामान्य है वह – प्रधानमंत्री द्वारा चीन के हितों का ध्यान रखना है। ऐसे में इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है जब चीन का सरकारी मीडिया प्रधानमंत्री की सिर्फ़ प्रशंसा करे।