सोशल संवाद डेस्क : ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। यह व्रत सुखी वैवाहिक जीवन और अखंड सौभाग्य के आशीर्वाद के लिए सुहागिन महिलाएं रखती हैं। इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। पुराणों के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजा करने और , व्रत कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को ज्ञान, निर्वाण और दीर्घायु का पूरक माना गया है।
वट सावित्री व्रत के पीछे एक बोहोत ही रोचक कथा है ।राजर्षि अश्वपति की एक संतान थी, जिसका नाम था सावित्री। सावित्री का विवाह अश्वपति के पुत्र सत्यवान से हुआ था। नारद जी ने अश्वपति को सत्यवान के गुण और धर्मात्मा होने के बारे में बताया था। लेकिन उन्हें यह भी बताया था कि सत्यवान की 1 साल बाद ही मृत्यु हो जाएगी। पिता ने सावित्री को काफी समझाया लेकिन उन्होंने कहा कि वह सिर्फ़ सत्यवान से ही विवाह करेंगी और किसी से नहीं।
सत्यवान अपने माता-पिता के साथ वन में रहते थे। विवाह के बाद सावित्री भी उनके साथ में रहने लगीं। सत्यवान की मृत्यु का समय पहले ही बता दिया था इसलिए सावित्री पहले से ही उपवास करने लगी। जब सत्यवान की मृत्यु का दिन आया तो वह लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगा। सावित्री ने कहा कि आपके साथ जंगल में मैं भी जाऊंगी। जंगल में जैसे ही सत्यवान पेड़ पर चढ़ने लगा तो उनके सिर पर तेज दर्द हुआ और वह वृक्ष से आकर नीचे सावित्री की गोद में सिर रख कर लेट गए। कुछ समय बाद सावित्री ने देखा कि यमराज के दूत सत्यवान को लेने आए हैं। सावित्री पीछे पीछे यमराज के चलने लगी। जब यमराज ने देखा कि उनके पीछे कोई आ रहा है तो उन्होंने सावित्री को रोका और कहा कि तुम्हारा साथ सत्यवान तक धरती पर था अब सत्यवान को अपना सफर अकेले तय करना है।
सावित्री ने कहा मेरा पति जहां जाएगा मैं वही उनके पीछे जाऊंगी, यही धर्म है। यमराज सावित्री के पतिव्रता धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने एक वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी मांगी। यमराज ने वर देकर आगे बढ़े। फिर से सावित्री पीछे आ गई है। फिर एक और वरदान मांगने को कहा तब सावित्री ने कहा कि मैं चाहती हूं मेरे ससुर का खोया हुआ राजपाट वापस मिल जाए। यह वरदान देकर यमराज आगे बढ़े। इसके बाद फिर वे सावित्री पीछे चल पड़ीं। तब यमराज ने सावित्री को एक और वर मांगने के लिए कहां तब उन्होंने कहा कि मुझे सत्यवान के 100 पुत्रों का वर दें। यमराज ने यह वरदान देकर सत्यवान के प्राण लौटा दिए। सावित्री लौटकर वृक्ष के पास आई और देखा कि सत्यवान जीवित हो गए हैं।वह उसे साथ लेकर सास-ससुर के पास पहुंची तो उन्हें नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई तथा उनका राज्य उन्हें वापस मिल गया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर लाई थी।
यही कारण है की इस दिन पति की लंबी आयु, सुख, शांति, वैभव, यश, ऐश्वर्य के लिए यह व्रत रखा जाता है ।
इस वर्ष वट सावित्री व्रत 19 मई, शुक्रवार को है । इस बार गज केसरी योग के साथ शश राजयोग भी लग रहा है । ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का शुभारंभ 18 मई, दिन गुरुवार को रात 9 बजकर 42 मिनट से होगा ।ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का समाप्त 19 मई, दिन शुक्रवार को रात 9 बजकर 22 मिनट पर होगा ।ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, वट सावित्री का व्रत 19 मई, दिन शुक्रवार को रखा जाएगा ।