सोशल संवाद / डेस्क : ज्योतिष शास्त्र और पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य और चन्द्र को ग्रहण राहू और केतु की वजह से लगता है। इन दोनों ग्रहों की अपनी अलग कहानी है। ये दोनों गृह एक समय अलग नहीं बल्कि एक हुआ करते थे । वो भी एक असुर ।जी हा चलिए आपको इनकी पूरी कहानी बताते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार देवों और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में एक अमृत कलश भी निकला था। इसके लिए देवताओं और दानवों में विवाद होने लगा। इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु ने अपने हाथ में अमृत कलश देवताओं और दानवों में समान भाग में बांटने का विचार रखा। जिसे भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से आकर्षित होकर दानवों ने स्वीकार कर लिया। तब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग लाइन में बैठा दिया।और देवताओं को अमृत पिलाने लगे।
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असुर अपनी बारी का इंतज़ार करते रहे। इस बिच एक असुर को लगा कि उनके साथ गलत हो रहा है। और फिर वो भेष बदल कर देवताओ के बिच जा कर बैठ गया । विष्णु जैसे ही राहु को अमृतपान कराने लगे सूर्य व चन्द्र ने उसे पहचान लिया और विष्णु को उनके बारे में सूचित कर दिया। भगवान विष्णु ने उसी समय सुदर्शन चक्र द्वारा राहु के मस्तक को धड से अलग कर दिया। पर इस से पहले अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले में चली गयी थी जिस से वह सर तथा धड दोनों रूपों में जीवित रहा।
सूर्य और चंद्रमा के राज खोलने के कारण राहु और केतु दोनों इनके दुश्मन बन गए। इसी कारण ये राहु और केतु इन दोनों को ग्रास करते रहते हैं।
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