सोशल संवाद / डेस्क : नारी के सम्मान और स्वतंत्रता पर जमशेदपुर की श्रेया सोनी के द्वारा लिखी गई कविता।
क्या वाकई हमारा देश पूर्णतः स्वतंत्र हो चुका है?
क्या ये स्वतंत्रता विचारों और अरमानों को मिली है ,
या इंसानियत की निर्मम हत्या करने वालों को,
जो इंसानियत को बेरहमी से कुचलते हैं,
जो इस स्वतंत्रता को अपनी निजी संपत्ति समझते हैं ।
कब आज़ाद होगा ये समाज उन दरिंदों से,
जो देवी समान पूजनीय स्त्री के सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं।
यह कैसी दुनिया है, यह कैसा समाज है,
जहां बेटियों का सम्मान मजाक बनकर रह गया है,
उसकी स्वतंत्रता का कोई ख्याल नहीं।
क्यों भूल जाते हैं कि वह भी एक इंसान है,
उसकी भी इच्छाएं हैं, उसके भी अरमान है,
वो भी किसी की बेटी है, किसी की आंखों का तारा है
किसी की बहन है जो अपने भाई की लाडली है,
वो सिर्फ एक स्त्री नहीं, वसुंधरा है जिसके हम शरणार्थी हैं।
जब वह जन्म लेती है, सौगात में खुशियाँ साथ लाती हैं ,
दशहरा में जिन कन्याओं की पूजा की जाती है,
आगे चलकर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है,
बड़े होते ही उसके अरमान पैरों तले कुचल दिए जाते हैं,
क्या फायदा उन पंखों का जो इस आसमान में उड़ान ही नहीं भर सकती।
हर कदम पर है डर और असुरक्षा, हर नज़र में सवाल,
फिर भी वो डटकर सामना करती है अपने उम्मीदों को संभाल।
रात के सन्नाटों में भी उसके सपने जागते हैं,
पर समाज के डर में अक्सर वो सो जाते हैं।
बेटी सिर्फ अपने परिवार की ही नहीं,
बल्कि इस समाज और इस देश की भी जिम्मेदारी है।
कौन हैं ये मनुष्य, जो कम आंकते हैं उसकी हिम्मत और योग्यता को,
पुरुष नहीं पिशाच बन गए हैं, अंधकारमय करते उसकी हर पहचान को।
स्त्री तो वो ज्वाला है, जिसकी लौ से सारा जग रौशन हो जाए,
समय है ऐसे समाज के निर्माण का, जहां हर बेटी सुरक्षित मुस्कुराए,
हर मार्ग हो अब अपराधमुक्त, हर कदम पर स्वतंत्रता और न्याय की पताका फहराए।