सोशल संवाद / डेस्क : हमारे भारत देश में ऐसे कई मंदिर हैं, जिनका संबंध या तो दूसरे युग से है या फिर उनका इतिहास कई हजार साल पुराना है। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका निर्माण बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह मंदिर कर्नाटक के द्वारसमुद्र में स्थित है। द्वारसमुद्र का वर्तमान नाम हलेबिड है, जो कर्नाटक के हसन जिले में दक्कन के पठार पर एक बहुत ही खूबसूरत जगह है। मंदिर का नाम होयसलेशवर मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। होयसलेशवर मंदिर एक शैव मंदिर है, लेकिन यहां भगवान विष्णु, भगवान शिव और दूसरे देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों को सॉफ्टस्टोन से बनाया गया है, जो समय के साथ कठोर हो जाता है।
इस मंदिर के अंदर बहुत कम रोशनी में भगवान शिव की एक शानदार मूर्ति विराजमान है। शिव जी की मूर्ति के मुकुट पर मानव खोपड़ियां बनी हैं, जो मात्र 1 इंच चौड़ी हैं। इन छोटी-छोटी खोपड़ियों को इस तरह से खोखला किया गया है कि उससे गुजरने वाली रोशनी आंखों के सुराख से होती हुई मुंह में जाकर कानों से बाहर लौट आती हैं। हजारों साल पहले हाथ से बनाए गए ये सुराख बहुत ही अद्भुत हैं।
होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में 1120 CE और 1150 CE के बीच किया गया था। मंदिर का निर्माण होयसल शासक राजा विष्णुवर्धन ने करवाया था। कहा जाता है कि विष्णुवर्धन होयसालेश्वर के नाम पर ही इस मंदिर का नाम होयसलेश्वर मंदिर रखा गया।
होयसलेशवर मंदिर एक ऊंचे प्लेटफार्म पर बनी है, और इस प्लेटफार्म पर 12 नक्काशीदार परतें बनी हुई हैं। सबसे कमाल की बात ये है कि इन परतों को जोड़ने के लिए चूने या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ था, बल्कि इंटरलॉकिंग के जरिए इसे जोड़ा गया था। इसी इंटरलॉकिंग की वजह से आज भी मंदिर मजबूती के साथ खड़ा हुआ है। इसकी बाहरी दीवारों पर सैकड़ों खूबसूरत मूर्तियां बनी हुई हैं।
इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि हर मूर्ति को एक ही पत्थर से बनाया गया है। इसके साथ ही मंदिर के अंदर पत्थर के स्तम्भ भी बने हैं। पत्थर से बने ये स्तम्भ गोलाकार डिजाइन में हैं, जिसे हाथ से बना पाना नामुमकिन ही लगता है। दुनियाभर के वैज्ञनिकों का कहना है कि यह मंदिर हाथ से निर्मित नही है, क्योंकि मन्दिर के नक्काशी वं कलाकारी तथा मन्दिर के दीवालों पर जिस तरह से मूर्तियों को उकेरा गया है वँ स्तंभों की गोलाई को जिस ढंग से बनाया गया है, वह किसी भी मनुष्य के हाथों से बनाया जाना मुश्किल है।
जिसे देख लगता है यह मन्दिर मशीनों से बनाई होगी, जबकि उस जमाने में किसी भी प्रकार के मशीन के बारे में कहि भी उल्लेख नहीं मिलता हैं। इस मंदिर की संरचना में शैलखटी क्लोराइट शिस्ट का प्रयोग किया गया हैं। होयसलेशवर मंदिर वास्तुशिल्प का एक बेजोड़ नमूना है जो आज भी सभी के लिए आकर्षण का केंद्र है। कई लोगों का ये भी मानना है कि इस मंदिर का निर्माण मनुष्य जाति ने किया ही नहीं है। मंदिर के बाहरी भाग को बारीक मूर्तियों से सजाया गया है, जबकि मंदिर के अंदर का भाग तुलनात्मक रूप से सरल है। अंदरूनी हिस्सों में उत्तम नक्काशी है।
सबसे आकर्षक वस्तु अत्यधिक पॉलिश किए गए खराद से बने स्तंभ हैं। इन स्तम्बो की बारीकी हैरान कर देने वाली है।इतना सटीक काम सिर्फ और सिर्फ मशीन से ही बन सकता है पर उस समय तो मशीन थी ही नहीं । मंदिर की सुंदर प्रतिमाएं और उत्तम नक्काशी लोगों को भारत के सुनहरे दिनों में वापस ले जाती है। मंदिर के आधार में हाथियों, शेरों, घोड़ों और फूलों के स्क्रॉल के साथ नक्काशीदार फ्रेज की 8 पंक्तियां हैं। मंदिर परिसर में दो मुख्य मंदिर हैं- एक होयसलेश्वर को समर्पित है और दूसरा राजा विष्णुवर्धन की रानी शांतलदेवी को समर्पित है ।इस मंदिर में एक विशाल पत्थर के नंदी के साथ सूर्य देव की 7 फीट लंबी मूर्ति है। होयसलेश्वर मंदिर का एक और चमत्कार भगवान गणेश जी की मूर्तियों का समूह है। मंदिर की बाहरी दीवार का दाहिना हिस्सा एक नृत्य करते हुए गणेश जी के चित्र से शुरू होता है। मंदिर में भगवान गणेश जी की लगभग 240 अलग-अलग मुद्राओं वाली मूर्तियां हैं।
गरुड़ स्तंभ मंदिर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कि गरुड़ राजाओं और उनकी रानियों के अंगरक्षकों का उल्लेख करते हैं। इन सबके साथ, मंदिर की छत भी अनोखी है, जिसे सुनकाशी के रूप में जाना जाता है। मंदिर के इस हिस्से को छोटी छतों और एटिक्स से सजाया गया है जो अब एक खंडहर की स्थिति में हैं। लेकिन मंदिर की हर एक मूर्ति आसानी से दिखाई देती है। वहीं, मंदिर परिसर के भीतर म्यूजियम खुदाई में मिलीं मूर्तियों, लकड़ी के हस्तशिल्प, नक्शों और देवताओं और मंदिरों की तस्वीरों का खजाना है। इसके अलावा यहां समुद्र मंथन,कैलाश पर्वत उठाने का प्रयास करता हुआ रावण,लंका युद्ध के समय भगवान श्री राम की बानर सेना द्वारा समुद्र में रामसेतु निर्माण करती हुई विचित्र मूर्तिया,गजेन्द्र मोक्ष,तथा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मोउत्सव, पूतना वध , गोवर्धन पर्वत उठाए हुए भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमाएं और महाभारत काल के कुरुक्षेत्र मैदान में अर्जुन व कर्ण के मध्य युद्ध का दृश्य को उत्कृष्ट प्रदर्शन किया गया है।
यह मंदिर सुबह 6:30 बजे खुलता है और रात 9:00 बजे बंद हो जाता है। पर्यटक साल के किसी भी समय इस मंदिर में जा सकते हैं।
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