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ये है दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर, माना जाता है भगवान का शयन कक्ष

सोशल संवाद / डेस्क :  आपने कई शहरो में बसे प्राचीन मंदिरों के बारे में सुना होगा। पर एक मंदिर ऐसा भी है जिसपे एक पूरा शेहेर बसा हुआ है। जी हा सके अंदर की जगह यूरोप के वैटिकन सिटी से भी काफी ज्यादा बड़ी है।

हम बात कर रहे हैं, श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर की जो तमिलनाडु में स्थित है। मंदिर तमिलनाडु में कावेरी और कालिदाम नदी के बीच टापू पर बना हुआ है। बता दें, इस मंदिर में भगवान विष्णु, राम, श्री कृष्ण और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। चलिए आपको इस मंदिर के बारे में विस्तार से  बताते हैं।

श्री रंगनाथस्वामी मंदिर भगवान रंगनाथ को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। भगवान रंगनाथ को विष्णु का ही अवतार माना जाता है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित है इसलिए इसे श्रीरंगम मंदिर भी कहा जाता हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 मुख्य मंदिरों में भी शामिल है। मंदिर में पूजा करने की ठेंकलाई प्रथा का पालन किया जाता है। दक्षिण भारत का यह सबसे शानदार वैष्णव मंदिर है, जो किंवदंती और इतिहास दोनों में समृद्ध है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार को राजा गोपुरम का नाम दिया गया है, जो 13 प्रतिशत के क्षेत्रफल में बना हुआ है और 239.501 फीट ऊँचा है। श्रीरंगम मंदिर को विश्व के सबसे विशाल हिंदू मंदिरों में भी शामिल किया गया है। मंदिर 156 एकर (6,31,000 मीटर वर्ग) में 4116 मीटर (10,710 फीट) की परिधि के साथ फैला हुआ है, जो इसे भारत का सबसे बड़ा मंदिर बनाता है।

देखें विडियो : https://www.youtube.com/watch?v=wmnN6YWati8

मान्यता है कि विष्णु यहां राम के रूप में विराजित हैं। उन्हें पेरुमल और अजागिया मनावलन भी कहा जाता है। जिसका अर्थ है ‘हमारे भगवान’ और ‘सुंदर वर’। लक्ष्मी यहां रंगनायकी कही जाती हैं। मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव कृष्ण जन्माष्टमी पर होता है। संभवत: इतने देवताओं के इस मेल के कारण ही दक्षिण भारत में इस मंदिर का गोपुरम सबसे ऊंचा है, जो 237 फीट का है।

मंदिर के पुजारी पार्थसारथी बताते हैं कि मुख्य मंदिर को रंगनाथ स्वामी मंदिर कहा जाता है, जो भगवान का शयन कक्ष है। इस मंदिर में विष्णु की प्रतिमा शयन मुद्रा में है। साथ ही विष्णु की खड़ी प्रतिमा, कृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती, श्रीराम, नरसिम्हा के विविध रूप और वैष्णव संतों की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में गंग राजवंश के दौर में हुआ था। 16वीं और 17वीं सदी में भी कई निर्माण कार्य किए गए।

रंगनाथ स्वामी मंदिर में दिवाली के पहले बड़ा उत्सव मनाया जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की दूज से एकादशी तक नौ दिन का पर्व चलता है। इस पर्व को ओंजल उत्सव कहते हैं। श्रीरंगनाथस्वामी की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है। वैदिक मंत्रों और तमिल गीतों से दुर्घटनाओं और दोषों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। साल में एक बार रंगनाथ श्रीरंगम के राजा बनते हैं। दिसंबर-जनवरी माह में 21 दिन का उत्सव होता है। इस दौरान रंगनाथ एक दिन के लिए राजा बनाए जाते हैं। उस दिन उन्हें रंगराजन पुकारा जाता है।

मंदिर परिसर में अलग-अलग देवी देवताओं के 80 पूजा स्थल हैं। दीवारों पर सिर्फ तमिल ही नहीं, संस्कृत, तेलुगु, मराठी, ओडिया और कन्नड़ भाषा में 800 से अधिक शिलालेख अंकित हैं। इनकी लिपि तमिल और ग्रंथ है। ग्रंथ लिपि का इस्तेमाल तमिल और मलयालम भाषाविद् छठी सदी से ही संस्कृत लिखने के लिए करते रहे हैं। कहते  है कि त्रेता युग में भगवान राम ने यहां लंबे समय तक आराधना की थी। लंका विजय के बाद जब वे वापस लौटे तो यह मंदिर उन्होंने विभीषण को सौंप दिया। विभीषण के सामने भगवान राम इसी स्थान पर विष्णु रूप में प्रकट हुए थे और कहा था कि वे यहां रंगनाथ के रूप में निवास करेंगे और लक्ष्मी रंगनायकी के रूप में रहेंगी।

परिसर में दूसरा बड़ा मंदिर रंगनायकी का है, जिन्हें श्रीरंग नाचियार भी कहा जाता है।  उनका एक नाम पाडी थंडा पथिनी भी है, जिसका शाब्दिक अर्थ है वो स्त्री जो कभी अपने घर की चौखट से बाहर नहीं जाती। मंदिर में बड़े धार्मिक उत्सवों पर रंगनाथ स्वामी की प्रतिमा को उनकी पत्नी रंग नाचियार के मंदिर में लाया जाता है। मंदिर के कई बड़े उत्सव और पूजा रंगनायकी के मंदिर में होते हैं। परंपरागत रूप से अन्य मंदिरों में विष्णु या पेरुमल की पूजा में लक्ष्मी के श्रीदेवी और भूदेवी रूपों के साथ होती है, लेकिन इस मंदिर में रंगनायकी प्रमुख हैं।

श्रीरंगम मंदिर में हर साल कई वार्षिक उत्सव मनाया जाते हैं। इस उत्सव के दौरान यहां पर स्थापित देवी देवताओं की मूर्तियों को गहनों से सुशोभित किया जाता है और बहुत ही धूमधाम से उत्सव को मनाया जाता है। जैसे – वैकुंठ एकादशी, श्रीरंगम मंदिर ब्राहोत्सव, स्वर्ण आभूषण उत्सव, रथोत्सव, वसंतोत्सव, ज्येष्ठाभिषेक, श्री जयंती, पवित्रोत्सव, थाईपुसम, वैकुण्ठ एकदशी आदि त्यौहार मनाए जाते हैं। आपको बता दें कि यहां पर आप जाना चाहते हैं तो अगस्त से फरवरी के बीच जाएं क्योंकि यही समय यहां पर जाने का अनुकूल समय माना जाता है।

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