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खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि: मानगो में बलिदान दिवस पर युवाओं को किया गया प्रेरित

By Riya Kumari

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Tribute to Khudiram Bose: Youth inspired on Balidan Diwas in Mango

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सोशल संवाद / जमशेदपुर : झारखंड बांग्लाभाषी उन्नयन समिति के द्वारा मानगो ब्रिज के पास दुर्गा मंडप में देश के वीर स्वतंत्रता सेनानी शहीद खुदीराम बोस  के 117 वाॅ बलिदान दिवस मनाया गया जिसमे भारतीय जनता पार्टी व्यवसायिक प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक श्रीमान नीरज सिंह जी ने सम्मिलित होकर उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर नमन किया तथा वर्तमान परिदृश्य में आज के युवा वर्ग को खुदीराम बोस की देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत जीवन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय स्वतन्त्रता के इतिहास में अनेक कम आयु के वीरों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी है। उनमें खुदीराम बोस का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता है। उन दिनों अनेक अंग्रेज अधिकारी भारतीयों से बहुत दुर्व्यवहार करते थे। ऐसा ही एक मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड उन दिनों मुज्जफरपुर, बिहार में तैनात था।  वह छोटी-छोटी बात पर भारतीयों को कड़ी सजा देता था। अतः क्रान्तिकारियों ने उससे बदला लेने का निश्चय किया।\

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कोलकाता में प्रमुख क्रान्तिकारियों की एक बैठक में किंग्सफोर्ड को यमलोक पहुँचाने की योजना पर गहन विचार हुआ। उस बैठक में खुदीराम बोस भी उपस्थित थे। यद्यपि उनकी अवस्था बहुत कम थी; फिर भी उन्होंने स्वयं को इस खतरनाक कार्य के लिए प्रस्तुत किया। उनके साथ प्रफुल्ल कुमार चाकी को भी इस अभियान को पूरा करने का दायित्व दिया गया। योजना का निश्चय हो जाने के बाद दोनों युवकों को एक बम, तीन पिस्तौल तथा 40 कारतूस दे दिये गये। दोनों ने मुज्जफरपुर पहुँचकर एक धर्मशाला में डेरा जमा लिया। कुछ दिन तक दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का अध्ययन किया। इससे उन्हें पता लग गया कि वह किस समय न्यायालय आता-जाता है; पर उस समय उसके साथ बड़ी संख्या में पुलिस बल रहता था। अतः उस समय उसे मारना कठिन था।

अब उन्होंने उसकी शेष दिनचर्या पर ध्यान दिया। किंग्सफोर्ड प्रतिदिन शाम को लाल रंग की बग्घी में क्लब जाता था। दोनों ने इस समय ही उसके वध का निश्चय किया। 30 अपै्रल, 1908 को दोनों क्लब के पास की झाड़ियों में छिप गये। शराब और नाच-गान समाप्त कर लोग वापस जाने लगे। अचानक एक लाल बग्घी क्लब से निकली। खुदीराम और प्रफुल्ल की आँखें चमक उठीं। वे पीछे से बग्घी पर चढ़ गये और परदा हटाकर बम दाग दिया। इसके बाद दोनों फरार हो गये। परन्तु दुर्भाग्य की बात कि किंग्सफोर्ड उस दिन क्लब आया ही नहीं था। उसके जैसी ही लाल बग्घी में दो अंग्रेज महिलाएँ वापस घर जा रही थीं। क्रान्तिकारियों के हमले से वे ही यमलोक पहुँच गयीं। पुलिस ने चारों ओर जाल बिछा दिया। बग्घी के चालक ने दो युवकों की बात पुलिस को बतायी। खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी सारी रात भागते रहे। भूख-प्यास के मारे दोनों का बुरा हाल था। वे किसी भी तरह सुरक्षित कोलकाता पहुँचना चाहते थे।

प्रफुल्ल लगातार 24 घण्टे भागकर समस्तीपुर पहुँचे और कोलकाता की रेल में बैठ गये। उस डिब्बे में एक पुलिस अधिकारी भी था। प्रफुल्ल की अस्त व्यस्त स्थिति देखकर उसे संदेह हो गया। मोकामा पुलिस स्टेशन पर उसने प्रफुल्ल को पकड़ना चाहा; पर उसके हाथ आने से पहले ही प्रफुल्ल ने पिस्तौल से स्वयं पर ही गोली चला दी और बलिपथ पर बढ़ गये। इधर खुदीराम थक कर एक दुकान पर कुछ खाने के लिए बैठ गये। वहाँ लोग रात वाली घटना की चर्चा कर रहे थे कि वहाँ दो महिलाएँ मारी गयीं। यह सुनकर खुदीराम के मुँह से निकला – तो क्या किंग्सफोर्ड बच गया ? यह सुनकर लोगों को सन्देह हो गया और उन्होंने उसे पकड़कर पुलिस को सौंप दिया। मुकदमे में खुदीराम को फाँसी की सजा घोषित की गयी। 11 अगस्त, 1908 को हाथ में गीता लेकर खुदीराम हँसते-हँसते फाँसी पर झूल गये। तब उनकी आयु 18 साल 8 महीने और 8 दिन थी। जहां वे पकड़े गये, उस पूसा रोड स्टेशन का नाम अब खुदीराम के नाम पर रखा गया है।

श्रीमान नीरज सिंह के द्वारा इस बात पर जोर दिया गया कि खुदीराम बोस के विषय में युवाओं और बच्चों के बीच में और ज्यादा जानकारी साझा करने की आवश्यकता है तथा उन्हें उचित सम्मान दिए जाने की जरूरत है पूर्व में मानगो चौक पर खुदीराम बोस की एक प्रतिमा स्थापित थी परंतु नया ओवरब्रिज के काम शुरू होने के कारण उसे प्रतिमा को वहां से शिफ्ट किया गया उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ओवरब्रिज का काम पूरा होने के बाद एक भव्य स्मारक का निर्माण उसी स्थान पर किया जाए तथा जो मानगो ओवर ब्रिज बन रहा है उसका नामकरण भी खुदीराम बोस के नाम पर ही किया जाए उनकी इन मांगों का वहां उपस्थित सभी लोगों द्वारा पुरजोर समर्थन किया गया तथा संस्था के द्वारा भी इन मांगों का पूरा समर्थन करते हुए सरकार से यह मांग की गई की मानगों के ओवर ब्रिज का नाम खुदीराम बोस के नाम पर ही किया जाएं ,यही अमर बलिदानी खुदीराम बोस जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी तथा आने वाले कई वर्षों तक युवाओं के बीच प्रेरणा के स्रोत बनी रहेगी !

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